



बलौदाबाजार में शिक्षक शांतिलाल पाटले की हत्या के मामले में विशेष न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत ने दो दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। जानें पूरी घटना और अदालत का फैसला।
चंद्रकांत वर्मा, बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में न्याय का परचम एक बार फिर बुलंद हुआ, जब एक शिक्षक की निर्मम हत्या के दो आरोपियों को अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई। विशेष न्यायाधीश (एट्रोसिटीज) अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत ने इस सनसनीखेज हत्याकांड में दोषियों को सख्त सजा सुनाकर एक स्पष्ट संदेश दिया कि कानून के हाथ लंबे हैं और अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा।
न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत में क्या था पूरा मामला?
28 दिसंबर 2022, एक ठंडी सुबह बलौदाबाजार के एक शांत मोहल्ले में हलचल मची थी। शिक्षक शांतिलाल पाटले, जो हमेशा समय पर स्कूल जाते और समाज में अपने शांति प्रिय व्यवहार के लिए जाने जाते थे, उस दिन मछली खरीदने निकले थे। लेकिन यह सफर उनके जीवन का आखिरी सफर बन जाएगा, यह किसी ने सोचा भी नहीं था।
परिवार वालों ने इंतज़ार किया, फोन किया… लेकिन न कोई जवाब आया, न कोई खबर। दिन ढलने लगा, और उम्मीदें भी। उसी शाम पत्नी, बच्चे, मोहल्ले के लोग—सब परेशान, सब बेसब्र। अंततः परिजनों ने पुलिस में गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। खोजबीन शुरू हुई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। तभी शांतिलाल के बच्चों ने पुलिस को बताया कि उन्हें संजय श्रीवास और सृजन यादव के साथ अंतिम बार देखा गया था। पुलिस को शक हुआ और जब दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो एक दिल दहला देने वाली सच्चाई सामने आई।
पुलिस जांच टीम का संघर्ष – पूरी रात खपा दी, ताकि सच्चाई सामने आ सके
इस केस की जांच में बलौदाबाजार के तत्कालीन डीएसपी और वर्तमान अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके साथ कसडोल थाना प्रभारी कैलाश चंद्र दास, हवलदार गिरीश टंडन, कांस्टेबल सुजीत तांबोली, चमन मिथलेश, और मनोज ब्रम्हे की टीम ने तकनीकी और ग्राउंड स्तर पर कड़ी मेहनत की।
जांच में आया चौंकाने वाला मोड़
पुलिस को शांतिलाल के दो बच्चों से एक महत्वपूर्ण सुराग मिला। उन्होंने बताया कि उनके पिता को अंतिम बार गांव के ही संजय श्रीवास और सृजन यादव के साथ देखा गया था। जब पुलिस ने दोनों संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ की, तो जो खुलासा हुआ उसने सभी को झकझोर दिया।
न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी: सच जो झकझोर गया…
जल्द ही परत-दर-परत सच्चाई सामने आने लगी। संजय और सृजन ने कबूल किया कि शांतिलाल ने उनसे उधार दिए गए पैसों की मांग की थी। जब उन्होंने पैसे वापस मांगे, तो आरोपियों ने गुस्से में आकर एक खौफनाक साजिश रच डाली। पहले उन्हें बहाने से साथ ले गए, फिर डंडों से पीट-पीटकर मार डाला और स्कार्फ से गला घोंटकर उनकी जिंदगी हमेशा के लिए खत्म कर दी। सबूत मिटाने के लिए हत्या के बाद शव को कसडोल मार्ग के किनारे एक गड्ढा खोदकर दबा दिया गया।
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अभिषेक सिंह ने बताया
जहाँ पर शिक्षक शांतिलाल पाटले का शव दफनाया गया था, वह इलाका बेहद सुनसान था और वहाँ मोबाइल नेटवर्क तक नहीं था। दरअसल, BSNL का तार डालने के लिए उस स्थान पर पहले से खुदाई हुई थी, उसी गड्ढे का फायदा उठाकर शव को वहीं दफनाया गया। आरोपियों ने हत्या के बाद शव को सड़ाने के लिए करीब 50 पैकेट नमक डाला था।
शुरुआत में आरोपी कुछ भी नहीं बता रहे थे। मेरे और कांस्टेबल सुजीत तंबोली के द्वारा लगातार कड़ी पूछताछ की गई। कई घंटों के प्रयास के बाद ही उन्होंने हत्या की बात कबूल की और शव दफनाने की जगह की निशानदेही की। जिस स्थान पर शव मिला, वहाँ नेटवर्क नहीं होने के कारण बड़ी कठिनाई हुई। हमने बड़ी मुश्किल से SDM को कॉल लगाया और उनकी मौजूदगी में शव खुदवाया गया।
न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी: कोर्ट में चला न्याय का पहिया
इस पूरे मामले की सुनवाई विशेष सत्र न्यायालय बलौदाबाजार के न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत में हुई। शासन की ओर से विशेष लोक अभियोजक अमिय अग्रवाल ने तर्क प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सामाजिक विश्वास और शिक्षक जैसे सम्मानित पेशे पर हमला है। न्यायाधीश कुरैशी ने हर साक्ष्य, गवाह, फोरेंसिक रिपोर्ट और पुलिस की पड़ताल को बेहद बारीकी से देखा।

विशेष सत्र न्यायालय ने सारे सबूतों, गवाहों और परिस्थितियों को देखते हुए दोनों आरोपियों संजय श्रीवास और सृजन यादव को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 के तहत आजीवन कारावास और 10-10 हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया।
विशेष लोक अभियोजक अमिय अग्रवाल ने बताया कि केस की सुनवाई बलौदाबाजार के विशेष सत्र न्यायालय में हुई। उन्होंने बताया कि “अंतिम बार साथ देखे जाने के सिद्धांत” और पुलिस की गहरी जांच ने केस को मजबूत किया। सभी पक्षों के तर्क और सबूतों को सुनने के बाद अदालत ने धारा 302/34 भादंवि के तहत संजय श्रीवास और सृजन यादव को उम्रकैद और 10-10 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई।

विशेष लोक अभियोजक अमिय अग्रवाल- देखिए क्या कहा?
अंत नहीं, शुरुआत है…
छत्तीसगढ़ टॉक डॉट कॉम के संपादक चंद्रकांत वर्मा का कहना हैं कि, इस फैसले ने सिर्फ शांतिलाल के परिवार को न्याय नहीं दिया, बल्कि समाज को एक संदेश दिया —
अन्याय कितना भी गहरा हो, सच्चाई और कानून की रोशनी उसमें रास्ता बना ही लेती है।
बलौदाबाजार की यह घटना सिर्फ एक हत्या नहीं थी, यह एक चुनौती थी हमारे न्यायिक तंत्र के लिए। और इस बार विशेष न्यायाधीश अब्दुल जाहिद कुरैशी की अदालत ने यह साबित कर दिया कि कानून के हाथ लंबे ही नहीं, बल्कि मजबूत भी हैं।
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