



बलौदाबाजार जिले में सट्टा और शराब माफियाओं का अघोषित साम्राज्य बन रहा हैं। पुलिस और आबकारी विभाग की ढिलाई से आम जनता त्रस्त है। जानिए पूरी रिपोर्ट इस काले कारोबार की।
चंदु वर्मा, बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ का एक ऐसा ज़िला, जो कभी शांत जीवनशैली और खेती-किसानी के लिए जाना जाता था, अब सट्टा और शराब माफियाओं के अघोषित साम्राज्य में तब्दील होता जा रहा है। गांव से लेकर कस्बों तक, हर नुक्कड़ पर एक सट्टा अड्डा, हर गली में शराब की अवैध भट्ठी—जैसे ज़िंदगी अब इन्हीं गतिविधियों की धुरी पर घूम रही हो। रात की खामोशी में जब पूरा बलौदाबाजार जिला नींद में डूबा होता है, तब कुछ गलियों में गतिविधियां तेज हो जाती हैं—कागज की पर्चियों पर किस्मत का खेल लिखा जा रहा होता है, और गांव के नुक्कड़ पर ठेके से ज्यादा भीड़ भट्ठियों पर होती है। यह कहानी है बलौदाबाजार की, जो धीरे-धीरे सट्टा और शराब माफियाओं का अघोषित साम्राज्य बनता जा रहा है।
छत्तीसगढ़ का बलौदाबाजार जिला इन दिनों एक स्याह हकीकत के साथ जूझ रहा है। यह जिला अब सिर्फ भौगोलिक मानचित्र पर नहीं, बल्कि सट्टा और शराब माफियाओं के अघोषित साम्राज्य के रूप में पहचाना जाने लगा है। आलम यह है कि गांव की गलियों से लेकर शहर के चौक-चौराहों तक, हर जगह इस अवैध कारोबार का बोलबाला है। और अफसोस की बात ये है कि प्रशासन और कानून-व्यवस्था इसके सामने लगभग नतमस्तक नजर आ रही है।
बलौदाबाजार: हर गली में सट्टा, हर गांव में शराब; छाया हुआ है काला कारोबार
जब हर गली में पर्चियों की खड़खड़ाहट और हर चौक पर बोतलें खुलने की आवाज़ आने लगे, तो समझिए कि बलौदाबाजार जिले के हालात बिगड़ चुके हैं। यह कहानी शुरू होती है बस स्टैंड की एक बेंच से, जहां एक बुज़ुर्ग अपना घर लुटता देख चुके हैं…
बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से लेकर, भाटापारा, सिमगा, पलारी, लवन, कसडोल, सुहेला—नाम लीजिए और आपको वहां सक्रिय सट्टा या शराब माफिया मिल जाएंगे। आईपीएल सट्टा, मटका सट्टा, ऑनलाइन जुए के ऐप—हर तरह की सट्टेबाज़ी यहां खुलेआम फल-फूल रही है। तरेंगा, अर्जुनी, निपनिया जैसे गांवों में तक सट्टा पर्चियों और मोबाइल ऐप्स के जरिए युवाओं को फंसाया जा रहा है।
बात सिर्फ सट्टे की नहीं, बलौदाबाजार में शराब का भी समानांतर साम्राज्य खड़ा हो गया है। गांव-गांव में अवैध भट्टियां चल रही हैं। देसी शराब की तस्करी से लेकर ब्रांडेड शराब की सप्लाई तक, सब कुछ इतना संगठित है कि यह किसी कारपोरेट नेटवर्क की तरह काम कर रहा है।
कई गांवों में तो महिलाएं खुद पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर के पास पहुंच चुकी हैं, शिकायतों की फाइलें जमा हो चुकी हैं—but action remains “pending approval”
बलौदाबाजार पुलिस-आबकारी विभाग की ‘दिखावटी कार्रवाई’ और जनता की नाराज़गी
सालों से चल रहे इस कारोबार पर काबू पाने के लिए जिम्मेदार पुलिस और आबकारी विभाग खुद सवालों के घेरे में हैं। आम जनता का आरोप है कि ये विभाग केवल खानापूर्ति कर रहे हैं। लोगो का कहना हैं पुलिस और प्रशासन सब जानती हैं कहा क्या हो रहा लेकिन कार्यवाही नही करती।
एक स्थानीय निवासी नाम न बताने की शर्त पर ने कहा, “पुलिस आती है, वसूली करती है और निकल जाती है। कार्रवाई का नाटक होता है, लेकिन असली माफिया खुलेआम घूमते हैं।”
सूत्रों का दावा है कि हर बार कार्रवाई की खबर पहले ही माफियाओं को मिल जाती है, जिससे वे सबूतों समेत मौके से गायब हो जाते हैं। कुछ समय पहले भाटापारा में दो सटोरिए गिरफ्तार किए गए, लेकिन उनके नाम सार्वजनिक नहीं किए गए—क्योंकि वे ‘बड़े नामों’ से जुड़े बताए जा रहे हैं।
जब शिकायत करने वाली महिलाएं ही आरोपों के जवाब ढूंढने निकल पड़ती हैं, और जब पुलिस थानों में सिर्फ खानापूर्ति होती है—तो यह भाग उस ‘सिस्टम’ को आईना दिखाता है, जो अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ चुका है…
शराब के नशे में डूबता भविष्य
गांव-गांव में अवैध शराब की भट्टियां चूल्हों से ज्यादा जल रही हैं। देसी महुआ से लेकर ब्रांडेड बोतलों तक, सब कुछ मिलता है—वो भी खुलेआम। बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से लेकर भाटापारा तक, सलोनी, पडकीडीह, लटुवा, सोनपुरी, हथबंद, गिधौरी, निपानिया, सुहेला, गिरौदपुरी, पलारी जैसे इलाकों में शराब बिकना और पीना अब लोगो की आदत बन चुका है।
हाल ही में भाटापारा ग्रामीण में एक युवक की हत्या हुई, और जांच में सामने आया कि सब कुछ नशे में हुआ। इसी तरह पलारी के सलोनी गांव की महिलाएं कलेक्टर से लेकर एसपी तक आवेदन दे चुकी हैं, पर अब तक नतीजा सिफर।
राजनीतिक संरक्षण: माफियाओं की सबसे बड़ी ढाल
इस अवैध साम्राज्य की सबसे मजबूत दीवार है—राजनीतिक संरक्षण। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, जब भी कोई सख्त कार्रवाई की जाती है, नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते हैं। भाटापारा में दो शराब माफियाओं के खिलाफ जब कार्रवाई हुई, तो उच्च स्तर से दबाव आने के चलते जांच बीच में ही ठंडी पड़ गई।
वो सियासी फोन कॉल जो रातों में कार्रवाई रुकवा देते हैं, और वो नेता जो पर्दे के पीछे किंगमेकर बने बैठे हैं—यह भाग उजागर करता है कि कैसे सत्ता की छांव में अपराध बेलगाम हो चला है…
बलौदाबाजार जिला प्रशासन से जुड़े सूत्र बताते हैं कि जब भी कोई बड़ा एक्शन होता है, कुछ नेताओं के फोन आने लगते हैं। ऐसे ही एक मामले में पुलिस ने जब दो शराब माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू की, तो राजनीतिक दबाव के चलते केस रफा-दफा कर दिया गया।
युवाओं का भविष्य अधर में, महिलाएं कर रहीं आवाज बुलंद
इस अंधेरे साम्राज्य का सबसे गहरा असर युवाओं पर पड़ा है। बेरोजगारी, लाचारी और लालच के बीच सैकड़ों युवक सट्टा और नशे के जाल में फंस चुके हैं। कई किशोर स्कूल-कॉलेज छोड़कर इसी धंधे में उतर गए हैं। वहीं महिलाएं अब सड़कों पर उतर आई हैं—पलारी के सलोनी गांव की महिलाएं खुद पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर से मिलकर अवैध शराब के खिलाफ गुहार लगा चुकी हैं।
गांव के एक बुजुर्ग कहते हैं, “अब तो लगता है जैसे बच्चों को जन्म के साथ ही सट्टा नंबर सिखाया जा रहा है। हर दिन कोई न कोई बच्चा इस दलदल में उतर रहा है।”
सवाल वही है: प्रशासन कब जागेगा?
हर कोई पूछ रहा है—क्या बलौदाबाजार यूं ही माफियाओं का गढ़ बना रहेगा? क्या पुलिस-प्रशासन और आबकारी विभाग की जवाबदेही तय नहीं होगी? कब तक इस बलौदाबाजार जिले के युवाओं का भविष्य सट्टा और शराब की भेंट चढ़ता रहेगा?
“जनता की पुकार: कब जागेगा प्रशासन?” आखिरी भाग जनता की आवाज़ है—आक्रोश, पीड़ा और उम्मीदों का समंदर। जब महिलाएं सड़कों पर उतरती हैं, बुज़ुर्ग आवाज़ उठाते हैं, और बच्चे डर से सहम जाते हैं, तब सवाल उठता है—कब तक चलेगा ये सब?
बलौदाबाजार की जनता के सवाल, प्रशासन की चुप्पी
- आखिर कब तक ये सब यूं ही चलता रहेगा?
- क्या हम अपने बच्चों को इसी माहौल में बड़ा करेंगे?
- क्या प्रशासन सिर्फ फाइलों और प्रेस नोट तक सीमित रह जाएगा?
इस ग्राउंड रिपोर्ट के जरिए यह आवाज उठाना ज़रूरी है कि अगर अब भी कदम नहीं उठाए गए, तो बलौदाबाजार सिर्फ एक ज़िला नहीं, अपराध और अंधकार का प्रतीक बन जाएगा।
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