PMGSY की सड़कों पर औद्योगिक कब्जा? ग्रामीणों की सुरक्षा अब भगवान भरोसे

झीपन से रावन तक जाने वाली PMGSY सड़क पर गुजरते भारी वाहन, ग्रामीणों की सुरक्षा पर संकट (Chhattisgarh Talk)
झीपन से रावन तक जाने वाली PMGSY सड़क पर गुजरते भारी वाहन, ग्रामीणों की सुरक्षा पर संकट (Chhattisgarh Talk)

PMGSY के तहत बनी सुहेला-झीपन-रावन सड़क पर अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट ग्रासिम की भारी ट्रकों की आवाजाही से गांवों में खतरे की घंटी बज चुकी है। बच्चे, किसान और आमजन भय के साए में हैं। पढ़ें बलौदाबाजार से ग्राउंड रिपोर्ट।


(ग्राउंड रिपोर्ट | सुहेला-झीपन-रावन मार्ग)
एक शांत और हरियाली से घिरा गांव – झीपन, जहां बच्चों की किलकारी गूंजती थी, महिलाएं मिट्टी के चूल्हे पर रोटी सेंकती थीं, किसान अपने खेतों की तरफ पैदल जाते थे – अब उन्हीं गलियों में 40 टन वजन उठाए हाइवा और डंपर गरजते हुए गुजरते हैं। यह वही रास्ता है जिसे प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत ग्रामीणों की सुविधा के लिए बनाया गया था। लेकिन आज, वह रास्ता उद्योगिक उपयोग (अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट ग्रासिम रावन) और भारी वाहनों के दबाव के कारण खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। — यह सिर्फ एक शिकायत नहीं, बल्की बलौदाबाजार जिले के सुहेला, बासीन, झीपन और रावन जैसे ग्रामीण इलाकों की आज की हकीकत है।

अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट ग्रासिम: सरकार की मंशा, ग्रामीणों की सुविधा — लेकिन…

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत बनी ये सड़कें गांवों को शहरों से जोड़ने, किसानों, विद्यार्थियों और आमजन को बेहतर सुविधा देने के उद्देश्य से बनाई गई थीं। लेकिन आज ये रास्ते औद्योगिक ट्रैफिक के दबाव में हैं — और यह दबाव अब ग्रामीणों के सिर दर्द से बढ़कर खतरे की घंटी बन गया है। क्योकि अल्ट्राटेक सीमेंट ग्रासिम प्लांट की मालवाहक गाड़िया रोजना गलियों से गुजरती हैं।

अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट ग्रासिम प्लांट तक पहुँचने का ‘शॉर्टकट’ बना ग्रामीण जीवन का ‘लाइफ कट’

ग्रामीण बताते हैं कि यह सड़क पहले केवल पैदल चलने वालों और स्कूली बच्चों के लिए उपयोगी थी, लेकिन अब ये मार्ग रावन स्थित ग्रासिम अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट तक जाने वाले ट्रकों का मुख्य बाईपास बन गया है। छोटे गांव की गलियों में जब 40 टन की हाइवा गुजरती है तो बच्चों के लिए सड़क पर चलना नहीं, बल्कि जिंदा बचना एक चुनौती बन गया है। बिना किसी वैकल्पिक बायपास के, सीधा गांव के भीतर से ट्रक, ट्रेलर और हाइवा निकलते हैं। इससे पुल टूट रहे हैं, सड़कें धंस रही हैं और हर मोड़ पर दुर्घटनाओं की आशंका मंडरा रही है।

प्रधानपाठक कृष्ण, जो स्कूल का मुख्य द्वार सड़क की ओर खुलता है, कहते हैं – “हमने बड़ा गेट खोलना बंद कर दिया है। छोटे-छोटे बच्चे भागते हुए बाहर निकलते हैं, और ट्रक हर समय गुजरते रहते हैं। जान बचाने के लिए अब केवल छोटा गेट ही खोलते हैं।”

सड़कें टूटीं, पुल क्षतिग्रस्त

ग्राम झीपन और सुहेला के बीच बना झीपन पुल अब जर्जर हो चुका है। ग्रामीण गेंदराम बताते हैं –
“झीपन का पुल टूट रहा है, ढालों का सरिया दिखने लगा है। छड़ कभी भी नीचे गिर सकती है। ट्रेलर और डंपर रोजाना इसी से जाते हैं।”

बिजली तारों से लेकर घरों तक खतरा -ग्रामीणों की आंखों देखी, जुबानी सच्चाई

जितेंद्र, गांव का युवा किसान, कहते हैं –
“ये सड़क 12 टन की गाड़ियों के लिए बनी है, लेकिन रोज़ 40 टन तक की गाड़ियाँ निकलती हैं। कई बार कोयले की गाड़ियां फंस चुकी हैं। बिजली के घरेलू तार तक टूट चुके हैं। ये गाड़ियाँ सीधे बस्ती के बीच से जाती हैं जहाँ बच्चे खेलते हैं।”

प्रशासन से की कई बार शिकायत – पर समाधान नहीं

ग्रामीणों का कहना है कि वे जनसुनवाई से लेकर पंचायत स्तर तक बार-बार शिकायत कर चुके हैं। NOC के बिना गाड़ियों के आने की बात भी सामने आई, लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकला।

ग्राम सरपंच संतोष वर्मा का कहना है –
“मैंने चुनाव के समय एक डंपर को मना किया था। उसके बाद से तो कोई गाड़ी नहीं दिखी। मैं रोज सुबह-शाम देखता हूं।”

लेकिन गांव की हकीकत कुछ और कहती है। ट्रक आज भी दौड़ रहे हैं, पुल आज भी दरक रहा है, और मासूम बच्चों की दौड़ आज भी डर में बदल चुकी है।

ग्रामीणों की स्पष्ट मांगें –

  1. भारी वाहनों की आवाजाही पर प्रतिबंध।
  2. औद्योगिक वाहनों के लिए वैकल्पिक बाईपास मार्ग।
  3. सड़क और पुल की तत्काल मरम्मत व मजबूती।
  4. स्कूल समय में भारी वाहनों के प्रवेश पर रोक।
  5. स्थायी समाधान हेतु प्रशासनिक हस्तक्षेप।

कहानी सिर्फ सड़क की नहीं, सिस्टम की भी है
यह केवल एक सड़क की कहानी नहीं, यह उस सिस्टम की कहानी है जो योजनाएं तो बनाता है लेकिन उनके क्रियान्वयन और निगरानी में चूक जाता है। PMGSY की भावना थी “सुगम और सुरक्षित रास्ता”, लेकिन वर्तमान में यह मार्ग “संक्रमण और संकट” बन चुका है।

समाप्ति नहीं, शुरुआत होनी चाहिए समाधान की
जब कोई योजना गांवों तक पहुंचती है, तो उसकी नींव लोगों के विश्वास पर टिकी होती है। अब समय है कि प्रशासन, शासन और उद्योग — तीनों मिलकर इस संकट का स्थायी समाधान करें। नहीं तो यह सड़क सिर्फ गड्ढों की नहीं, विश्वास की भी कब्रगाह बन जाएगी।


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