IIT convocation: छ्त्तीसगढ़ प्रदेश के बलौदाबाजार जिले मुख्यालय से महज 30 किलोमीटर दूर छोटे से गांव के किसान का लड़का आर. यीशु धुरंधर को 29 जून को आईआईटी (IIT Gandhi Nagar) गांधीनगर के 13वें दीक्षांत समारोह (13th Convocation) में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिग्री मिलेगी, जिसमें कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की डिग्री भी शामिल है। उन्होंने हाल ही में बेंगलुरु में स्कैन. एआई में इंटर्नशिप पूरी की है और जुलाई में डेटा साइंटिस्ट के रूप में कंपनी में शामिल होने वाले हैं।
IIT convocation: बता दे कि घर की आर्थिक इथिति खराब होने के बावजूद छोटे गांव गरीब किसान के बेटे ने चुनौतियों से लड़कर, 22 वर्षीय आर. यीशु धुरंधर (R Yeeshu Dhurandhar) ने अपनी परिस्थितियों से ऊपर उठने का दृढ़ संकल्प किया और छत्तीसगढ़ के एक मामूली गांव से दूर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर (आईआईटीजीएन) Indian Institute of Technology, Gandhinagar तक की यात्रा पर निकल पड़े। बलौदाबाजार (Baloda Bazar) जिले मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित जारा गांव में पहले कभी किसी को आईआईटी (IIT) में स्थान प्राप्त करते नहीं देखा गया था, जिससे यीशु की उपलब्धि एक अभूतपूर्व उपलब्धि बन गई।
शुरुवाती शिक्षा से अब तक की सीढ़ी?
आर. यीशु (R Yeeshu Dhurandhar) के पिता सालिक धुरंधर ने बताया कि मेरे बेटे ने कक्षा 1 सरस्वती शिशु मंदिर जारा में व पाँचवी तक प्रगति विद्यालय संडी में फिर 6वीं से 12वीं तक जवाहर नवोदय विद्यालय रायपुर में पढ़ाई की. 12वीं में 93.6% आने के बाद JEE की तैयारी भिलाई में की.
आर यीशु धुरंधर को नही आती थी अंग्रेजी
आर यीशु धुरंधर ने बताया कि मैं हिंदी माध्यम से शुरू से पढ़ाई किया, जब मेरा जवाहर नवोदय विद्यालय में कक्षा 6वी में अंग्रेजी हुआ तब बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था, मैं अंग्रेजी में ठीक से पढ़ नही पाता था तो कक्षा 6वीं के गर्मी छुट्टी में जब अपने गांव जारा गया, तब गांव से 10 किलोमीटर दूर जी. पी. चंद्रवंशी के पास अंग्रेजी सिखने जाता था उसके बाद से मुझे अंग्रेजी में कोई समस्या नही आयी, अगर जी. पी. चंद्रवंशी नही होंते तो शायद मैं आगे अंग्रेजी में शिक्षा नही ले पाता।
आर यीशु कहते हैं कि जब उसके कई दोस्त मनोरंजन में अधिक समय बिताते थे तब उसे भी बहुत इच्छा होती थी, कई बच्चे उसे कहते भी थे कि ‘तु जीवन के मजे नहीं ले रहा है यार।’ यीशु का भी घुमने-फिरने, मौज-मस्ती करने का खूब मन होता था पर उसे ये भी पता था कि उन सब में आवश्यकता से अधिक समय देने से पढ़ाई ठीक से नहीं हो पायेगी इसीलिए यीशु कई-कई बार अकेले बैठकर पढ़ते रहता था। उसकी मेहनत रंग लाई और उसका चयन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आई.आई.टी.), गांधीनगर, गुजरात में हुआ। आई.आई.टी. की परीक्षा को दुनिया के पांच सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है ।
IIT convocation: आईआईटी गांधीनगर में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, उन्होंने छत्तीसगढ़ सरकार से महत्वपूर्ण सहायता के साथ कई छात्रवृत्तियों के माध्यम से अपनी शिक्षा का खर्च उठाया, और उनके परिवार का अटूट समर्थन उनकी निरंतर शक्ति का स्रोत बना रहा। अपनी यात्रा पर विचार करते हुए, यीशु को कृतज्ञता और सौभाग्य की गहरी भावना महसूस होती है।
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जारा लौटकर, यीशु को अपनी उपलब्धियों और अपने साथियों द्वारा अपनाए गए रास्तों के बीच का अंतर देखकर आश्चर्य हुआ। वे कहते हैं, “मेरे कई सहपाठियों ने सब्ज़ियाँ बेचने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी, एक ऐसी सच्चाई जिसने मेरी कृतज्ञता को और गहरा कर दिया और बदलाव लाने के मेरे संकल्प को और मज़बूत कर दिया।”
आर यीशु धुरंधर अपनी सफलता से संतुष्ट नहीं है
यीशु के पिता सालिक धुरंधर में बताया कि हमने शुरुआत से बहुत कुछ देखा हैं इतनी मुश्किल परिश्थिति में मेरा बेटा देश भर में उच्च शिक्षा में योगदान देने का सपना देखता है, तथा यह सुनिश्चित करना चाहता है कि जारा जैसे दूरदराज के गांवों के अधिक से अधिक छात्र अपनी परिस्थितियों से मुक्त होकर अपनी पूरी क्षमता हासिल कर सकें। उन्होंने आगे बताया कि अमेरिका से 2 विश्वविद्यालय से उसे फ़ोन आ चुका है, लेकिन वो नही गया। बेटा मेरा देश में रहकर देश की सेवा करना चाहता हैं।
शुरुवात से मिली चुनौती? कैसे लड़ा यीशु
वह उस बैच में से हैं जिसकी पढ़ाई कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू हुई थी, जिसने कई बड़ी चुनौतियों का सामना किया। जैसे ही यीशु अपनी कक्षाएं शुरू करने वाले थे, महामारी ने उन्हें घर पर रहने के लिए मजबूर कर दिया, उन्हें अविश्वसनीय इंटरनेट और अनुपयुक्त शिक्षण वातावरण का सामना करना पड़ा। कोविड महामारी के कारण प्रथम वर्ष के छात्रों को छात्रावास की सुविधा नहीं मिलने के कारण, येशु के पिछड़ने का खतरा था। उन्होंने तत्कालीन आईआईटीजीएन के निदेशक प्रोफेसर सुधीर जैन को एक ईमेल लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी परेशानी बताई। निदेशक ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए एक समिति बनाई जिसने यीशु को छात्रावास में रहने की अनुमति दे दी।