बलौदाबाजार साइक्लोथॉन: PRO जनसंपर्क विभाग की चमकदार रिलीज़, असलियत कचरे के ढेर में दब गई

सोनबरसा वन में बलौदाबाजार साइक्लोथॉन के बाद गंदगी: PRO की चमकदार रिलीज़, असलियत कचरे के ढेर में दब गई, क्या यही है स्वच्छता पखवाड़ा? (Chhattisgarh Talk)
सोनबरसा वन में बलौदाबाजार साइक्लोथॉन के बाद गंदगी: PRO की चमकदार रिलीज़, असलियत कचरे के ढेर में दब गई, क्या यही है स्वच्छता पखवाड़ा? (Chhattisgarh Talk)

CG News: बलौदाबाजार में सोनबरसा संरक्षित वन में साइक्लोथॉन के बाद कचरे का अंबार, PRO की रिपोर्टिंग और ज़मीनी सच्चाई में बड़ा फर्क।

बलौदाबाजार: 28 सितंबर 2025 को जिला प्रशासन ने छत्तीसगढ़ रजत जयंती वर्ष और विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर “टूर दे बलौदाबाजार साइक्लोथॉन” का आयोजन सोनबरसा संरक्षित वन में किया। आयोजन की शुरुआत मंत्री टंकराम वर्मा और कलेक्टर दीपक सोनी ने की। जिला जनसंपर्क कार्यालय (PRO) जनसंपर्क अधिकारी ने इसे जिले की बड़ी उपलब्धि बताया और प्रेस विज्ञप्तियों में इसकी जमकर तारीफ की।

लेकिन, आयोजन के कुछ घंटों बाद सोनबरसा के जंगलों की तस्वीरें उस “चमकदार तस्वीर” से बिल्कुल अलग कहानी कह रही थीं। पेड़ों के बीच प्लास्टिक की बोतलें, खाने-पीने के पैकेट और गंदगी का ढेर देखकर साफ लगा कि प्रशासन ने “स्वच्छता” और “पर्यावरण” जैसे मूल मुद्दों को ताक पर रख दिया।

बलौदाबाजार जनसपंर्क अधिकारी (PRO) की प्रेस विज्ञप्ति ने इसे “जिले की नई पहचान” और “पर्यटन बढ़ाने का संदेश” बताया। तस्वीरें आईं, तालियां बजीं और पूरे आयोजन को प्रशासन की उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया गया। लेकिन आयोजन खत्म होने के बाद की तस्वीरें कुछ और ही कहानी कह रही हैं। संरक्षित जंगल कचरे के ढेर में बदल गया। बोतलें, पैकेट, प्लास्टिक और बचा-खुचा खाना जगह-जगह पड़ा मिला।

यानी प्रेस रिलीज़ में जहां सबकुछ चमकदार दिखा, वहीं जमीन पर जंगल की सच्चाई बिल्कुल उलट थी।

PRO की रिलीज़ में सबकुछ परफेक्ट

जनसंपर्क विभाग ने 28 और 29 सितंबर को प्रेस विज्ञप्तियां जारी कीं। इनमें बताया गया कि:

  • राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने साइक्लोथॉन का शुभारंभ किया और खुद पैडल मारकर प्रतिभागियों का उत्साह बढ़ाया।

  • कलेक्टर दीपक सोनी ने 50 किलोमीटर का ट्रैक तय कर “नेतृत्व का उदाहरण” पेश किया।

  • करीब 1000 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें बड़ी संख्या बाहर जिलों और राज्यों से थी।

  • विजेताओं को ₹25,000, ₹15,000 और ₹10,000 के पुरस्कार राशि व मेडल दिए गए।

  • रास्ते में 10 हाईड्रेशन प्वाइंट बनाए गए, जहां पानी, फल और ORS उपलब्ध था।

  • गांव-गांव में लोगों ने तालियां, फूल और गुब्बारों से साइक्लिस्टों का स्वागत किया।

  • प्रशासन की व्यवस्था और आयोजन की सफलता की खूब सराहना की गई।

यानी, PRO की नजर में यह आयोजन जिले का गौरव और प्रशासन की दक्षता का उदाहरण था।

आयोजन के बाद जंगल की असली तस्वीर

कार्यक्रम खत्म होते ही सोनबरसा संरक्षित वन कचरे से पट गया। जगह-जगह खाने-पीने के पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें और डिस्पोजल ग्लास बिखरे थे।

स्थानीय लोगों ने बताया कि साइक्लोथॉन के दौरान कई प्रतिभागियों और समर्थकों ने बोतलें और पैकेट जंगल में ही फेंक दिए। आयोजन खत्म होने के बाद सफाई की कोई समुचित व्यवस्था नहीं दिखी।

एक ग्रामीण ने कहा—
“हमने पहली बार इतना बड़ा आयोजन देखा। लोग तालियां बजा रहे थे, लेकिन कार्यक्रम के बाद जब हम जंगल गए तो हर जगह कचरा पड़ा मिला। यह वही जंगल है जहां हम पूजा करते हैं और जड़ी-बूटियां खोजते हैं।”

बलौदाबाजार रेंजर बसंत कुमार खांडेकर से सवाल करने पर chhattisgarhtalk.com को बताया कि, कार्यक्रम जहाँ हुआ वह मेरे रेंज में आता हैं हमारे वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर सोनबरसा रिजर्व फॉरेस्ट बलौदाबाजार में साइक्लोथॉन कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम में हमारे वन विभाग के द्वारा प्लास्टिक का उपयोग नही किया गया था हमने प्लास्टिक मुक्त रखा था। लेकिन वहाँ पर अन्य संबंधित विभाग और पंचायती स्तर पर लोग प्लास्टिक लेकर आये थे।


सोनबरसा संरक्षित वन का महत्व

सोनबरसा रिजर्व फॉरेस्ट बलौदाबाजार जिले का एकमात्र शहर से कुछ ही दूरी पर पाए जाने वाला वन क्षेत्र है। यह इलाका न सिर्फ हरियाली और प्राकृतिक सौंदर्य से भरा है बल्कि यहां कई तरह की वन्य प्रजातियां, दुर्लभ पक्षी और औषधीय पौधे पाए जाते हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां की जैव विविधता पूरे इलाके के पर्यावरण संतुलन के लिए जरूरी है। यह वन क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, ग्रामीण जीवन और पारंपरिक संसाधनों का भी सहारा है।

ऐसे में इस इलाके में किसी बड़े आयोजन का होना अपने आप में सवाल खड़ा करता है कि क्या प्रशासन ने यहां की संवेदनशीलता का ध्यान रखा?


विशेषज्ञों की राय: “इकोसिस्टम पर खतरा”

पर्यावरणविद डॉ. तिवारी का कहना है: “जंगल में छोड़ा गया प्लास्टिक और खाने का कचरा सबसे पहले बंदरों, सुअरों और कुत्तों के संपर्क में आता है। इसके बाद ये जानवर बीमार होते हैं और बीमारी का असर धीरे-धीरे पूरे इकोसिस्टम पर पड़ता है।” वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, प्लास्टिक बोतलें और पैकेट मिट्टी और पानी दोनों को प्रदूषित करते हैं। इन्हें पूरी तरह खत्म होने में सैकड़ों साल लगते हैं।

बलौदाबाजार रेंजर बसंत कुमार खांडेकर से सवाल करने पर बताया कि, कार्यक्रम जहाँ हुआ वह मेरे रेंज में आता हैं हमारे वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर सोनबरसा रिजर्व फॉरेस्ट बलौदाबाजार में साइक्लोथॉन कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम में हमारे वन विभाग के द्वारा प्लास्टिक का उपयोग नही किया गया था हमने प्लास्टिक मुक्त रखा था। लेकिन वहाँ पर अन्य संबंधित विभाग और पंचायती स्तर पर लोग प्लास्टिक लेकर आये थे।


प्रशासनिक सवाल

अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि—

  1. क्या जिला प्रशासन ने वन विभाग से विधिवत अनुमति ली थी? जबकि इसमे DFO ही नोडल अधिकारी थे।

  2. अगर ली थी, तो सफाई और पर्यावरण सुरक्षा के लिए क्या प्लान बनाया गया था?

  3. जब केंद्र और राज्य सरकारें “स्वच्छता ही सेवा पखवाड़ा” मना रही हैं, तो उसी समय प्रशासन ने क्यों खुद नियमों का उल्लंघन किया?

  4. आयोजन के नोडल अधिकारी वनमंडल अधिकारी गणवीर धम्मशील और सहायक खेल अधिकारी प्रीति बंछोर क्या इस जिम्मेदारी से बच सकते हैं?


कुछ प्रतिभागियों ने भी माना कि कचरा फैलाने पर रोकथाम की व्यवस्था कमजोर रही। रावन से आए एक प्रतिभागी जिसमे प्रतियोगिता में दूसरे स्थान पर जीत हासिल की उसने कहा—“ट्रैक अच्छा था, स्वागत शानदार था, लेकिन मुझे कहीं भी डस्टबिन नहीं दिखा। जब इतने बड़े आयोजन होते हैं तो सबसे पहले कचरे के प्रबंधन की व्यवस्था होनी चाहिए।”

तुलना: दूसरे जिलों में कैसे होते हैं आयोजन?

मध्यप्रदेश के पचमढ़ी और महाराष्ट्र के ताडोबा टाइगर रिजर्व में भी ऐसे आयोजन होते हैं। वहां प्रशासन आयोजन से पहले वन विभाग के साथ विस्तृत योजना बनाता है। प्रतिभागियों को प्लास्टिक लाने पर रोक होती है और हर जगह डस्टबिन व क्लीन-अप टीम तैनात रहती है।

बलौदाबाजार के आयोजन में इन सबसे अलग तस्वीर दिखी। यहां प्लास्टिक पर रोक भी नहीं थी और सफाई का जिम्मा भी गंभीरता से नहीं निभाया गया।


दोहरी तस्वीर: रिलीज़ बनाम हकीकत

  • PRO की प्रेस विज्ञप्ति में आयोजन जिले की बड़ी उपलब्धि दिखा।

  • लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि जंगल में गंदगी और प्रदूषण का अंबार लग गया।

  • जहां मंत्री और कलेक्टर की मौजूदगी का बखान किया गया, वहीं वन्यजीव सुरक्षा और पर्यावरणीय जिम्मेदारी की चर्चा तक नहीं हुई।

कानूनी पहलू

भारत का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 साफ कहते हैं कि संरक्षित क्षेत्रों में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधि अपराध मानी जाएगी। अगर वन विभाग की अनुमति के बिना आयोजन हुआ है तो यह सीधा उल्लंघन है। और अगर अनुमति थी भी, तो सफाई न करना और गंदगी छोड़ देना कानून के मुताबिक लापरवाही है, जिसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो सकती है।

सोनबरसा संरक्षित वन जिले की पहचान है। यहां इस तरह का आयोजन अगर जिम्मेदारी से होता तो यह जिला पर्यटन और खेल को नई ऊंचाई दे सकता था। लेकिन आयोजन के बाद की तस्वीर ने प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

अब जनता और पर्यावरणविद यही पूछ रहे हैं:

  1. क्या प्रशासन केवल चमकदार प्रेस रिलीज़ तक सीमित रह गया है?

  2. क्या वन्यजीवों की सुरक्षा केवल कागजों तक है?

  3. क्या जिला प्रशासन पर भी वही नियम लागू होंगे जो आम जनता पर होते हैं?


आगे क्या होना चाहिए

  • प्रशासन को तुरंत क्लीन-अप अभियान चलाकर जंगल को साफ करना चाहिए।

  • भविष्य में ऐसे आयोजनों के लिए “नो प्लास्टिक” पॉलिसी लागू करनी चाहिए।

  • प्रतिभागियों और आयोजकों दोनों के लिए जिम्मेदारी तय करनी चाहिए।

  • वन विभाग को इस पूरे मामले की जांच करनी चाहिए और अगर नियम तोड़े गए हैं तो कार्रवाई होनी चाहिए।


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