बलौदाबाजार के लटुवा गांव में पटेल मेडिकल के नाम पर अवैध क्लीनिक, बिना डिग्री इंजेक्शन और ऑपरेशन से कई लोग संक्रमित। प्रशासन पर सवाल।
बलौदाबाजार जिले के मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर दूर लटुवा ग्राम पंचायत में पिछले दो वर्षों से एक ऐसा खेल चल रहा है जिसने ग्रामीणों को डर और असहायता के भंवर में धकेल दिया है। पटेल मेडिकल नामक दवा दुकान के परदे के पीछे अवैध क्लीनिक का संचालन हो रहा है। लाइसेंस सिर्फ दवा बिक्री का, लेकिन हकीकत – इंजेक्शन, टांके, यहां तक कि छोटे-मोटे ऑपरेशन तक!
यह सिर्फ नियमों की धज्जियां उड़ाने का मामला नहीं है, बल्कि इंसानी जिंदगी के साथ खिलवाड़ है।
सबूत जो हिला देंगे आपकी सोच
इस मामले की परतें तब खुलीं जब गांव के कुछ जागरूक नागरिकों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर छत्तीसगढ़ टॉक डॉट कॉम को पुख्ता सबूत सौंपे।
इनमें शामिल हैं:
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एक वीडियो जिसमें खुद मेडिकल संचालक एक ग्रामीण को इंजेक्शन लगाते हुए दिख रहा है।
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दूसरा वीडियो, उस मरीज की हालत दिखाता है जिसकी कमर में इंजेक्शन के बाद भयानक संक्रमण और मवाद भर गया।
ये दोनों वीडियो अब प्रशासन के सामने सवाल खड़ा कर रहे हैं –
क्या इस अवैध इलाज ने ही आठ से दस ग्रामीणों की हालत बिगाड़ दी?
इन सबूतों से साफ है कि यह खेल कोई अफवाह नहीं, बल्कि दो वर्षों से चल रही गंभीर लापरवाही और कानून का मजाक है।
पीड़ित की दर्दनाक कहानी – गरीबी में इलाज
झोंका गांव के मिस्टर इंडिया (बदला हुआ नाम) ने अपनी बीमारी के लिए इस मेडिकल का रुख किया। उन्हें पीठ दर्द की शिकायत थी। दुकान संचालक ने इंजेक्शन लगाया और कुछ दवाइयां दीं।
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शुरुआती कुछ दिनों में दर्द बढ़ने लगा।
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घाव गहरा हुआ, मवाद भर गया और चलना-फिरना मुश्किल हो गया।
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अब महीनों से बिस्तर पर पड़े हैं और उनके परिवार पर आर्थिक बोझ बढ़ गया है।
मिस्टर इंडिया ने बताया, “गरीबी में सोचा सस्ता इलाज करवा लूं। सोचा गांव के मेडिकल से इलाज करा लूं। अब हालत यह है कि काम-धंधा छूट गया और इलाज के लिए उधार मांगना पड़ रहा है।”
संरक्षण में पल रहा कारोबार?
गांव के कई ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि मेडिकल संचालक बार-बार यह कहता है कि उसे स्थानीय अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है।
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विरोध करने वालों को डराया-धमकाया जाता है।
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कई लोग बीमार हुए लेकिन शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
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गांव में चर्चा है कि अब तक 8 से 10 लोग इस अवैध इलाज के शिकार होकर गंभीर संक्रमण झेल चुके हैं।
एक ग्रामीण (नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर) ने कहा, “यह दुकान दवा बेचने के लिए है, लेकिन यहां न सर्जरी रूम है न कोई प्रशिक्षित डॉक्टर। फिर भी इंजेक्शन से लेकर टांके तक लगाए जाते हैं।”
दो साल से चल रहा खेल – प्रशासन कहां था?
इस पूरे मामले में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि दो वर्षों तक यह सब खुलेआम चलता रहा और किसी ने रोकने की कोशिश क्यों नहीं की?
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क्या स्वास्थ्य विभाग ने कभी निरीक्षण नहीं किया?
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मेडिकल दुकान का लाइसेंस कैसे दिया गया?
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बिना योग्य डॉक्टर के इंजेक्शन और ऑपरेशन की छूट क्यों मिली?
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क्या इसमें विभागीय मिलीभगत है?
यह सवाल सीधे जिले के प्रभारी मंत्री और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल तक पहुंचते हैं। क्या मंत्री को इसकी जानकारी नहीं थी या फिर यह मामला जानबूझकर दबाया गया?
पटेल मेडिकल लटुवा से छत्तीसगढ़ टॉक की सीधी बातचीत
इस पूरे मामले को लेकर छत्तीसगढ़ टॉक ने पटेल मेडिकल लटुवा से सीधा सवाल-जवाब किया। बातचीत के अंश इस प्रकार हैं:
प्रश्न: लटुवा में पटेल मेडिकल आपका है?
पटेल मेडिकल लटुवा: हां, मेरा है।
प्रश्न: शिकायतें हैं कि आप इंजेक्शन लगाते हैं और छोटे-छोटे ऑपरेशन भी करते हैं?
पटेल मेडिकल लटुवा: नहीं सर, मैं नहीं करता। कौन बोला आपको?
प्रश्न: लेकिन हमारे पास एक वीडियो है जिसमें आप इंजेक्शन लगाते दिख रहे हैं।
पटेल मेडिकल लटुवा: नहीं सर, मैं इंजेक्शन नहीं लगाता हूं।
प्रश्न: आपकी शिकायत लगातार आ रही है कि आप इंजेक्शन लगाते हैं। क्या आपको इस बारे में पहले भी DI ने समझाइश दी थी?
पटेल मेडिकल लटुवा: हां सर, DI सर ने समझाइश दी थी, पर मैं नहीं लगाता हूं।
पीड़ितों की बढ़ती संख्या और ग्रामीणों की बेचैनी
गांव में कई ऐसे लोग हैं जो इलाज कराने के बाद परेशानी झेल रहे हैं। कुछ के घाव भरे नहीं, कुछ को भारी संक्रमण हुआ, और कुछ ने डर के कारण इस बारे में कभी खुलकर नहीं बताया।
गांव के बुजुर्गों का कहना है, “गरीब आदमी कहां जाए? सरकारी अस्पताल में समय लगता है, प्राइवेट में पैसे लगते हैं। ऐसे में गांव की दवा दुकान पर भरोसा कर लेते हैं और फिर मुसीबत झेलते हैं।”
ग्रामीण अब जिला प्रशासन और स्वास्थ्य मंत्री से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि इस अवैध क्लीनिक पर शिकंजा कसा जाए और पीड़ितों को न्याय मिले।
क्या है कानूनी स्थिति?
भारतीय कानून के अनुसार:
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बिना मान्यता प्राप्त डिग्री वाला व्यक्ति इलाज, इंजेक्शन या सर्जरी नहीं कर सकता।
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मेडिकल शॉप का लाइसेंस केवल औषधि बिक्री तक सीमित होता है।
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उपचार और ऑपरेशन के लिए अलग से पंजीकरण और योग्य चिकित्सक की आवश्यकता होती है।
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यदि जांच में ये आरोप सही साबित होते हैं, तो यह न केवल ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 बल्कि इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट का भी उल्लंघन है।
प्रशासन की चुप्पी – जानलेवा लापरवाही?
दो साल से यह खेल जारी है। ग्रामीणों के आरोप हैं कि कई बार अनौपचारिक शिकायतें की गईं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
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क्या स्वास्थ्य विभाग ने जानबूझकर आंखें मूंद लीं?
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क्या किसी ने जांच रिपोर्ट दबाई?
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या फिर अधिकारियों को रिश्वत देकर मामला रफा-दफा किया गया?
अब जबकि सबूत सामने आ चुके हैं, प्रशासन के पास कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।
क्या करेंगे स्वास्थ्य मंत्री?
यह मामला सीधे-सीधे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल के प्रभारी जिला बलौदाबाजार क्षेत्र से जुड़ा है। जनता जानना चाहती है कि मंत्री क्या कदम उठाएंगे:
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क्या जांच कमेटी गठित होगी?
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क्या संबंधित मेडिकल का लाइसेंस निलंबित किया जाएगा?
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पीड़ितों को मुआवजा मिलेगा?
सरकारी सिस्टम की जवाबदेही अब कठघरे में है।
लटुवा गांव की यह घटना एक बड़ी प्रशासनिक लापरवाही और स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलने वाला मामला बन गई है। जब जिला मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर यह हाल है, तो दूरस्थ इलाकों में क्या स्थिति होगी? अब देखना यह है कि स्वास्थ्य मंत्री और जिला प्रशासन कब तक चुप रहते हैं और कब तक ग्रामीणों को सिर्फ आश्वासन मिलता रहेगा।
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