अल्दा से उठी चिंगारी, अब 44 गांवों में ज्वालामुखी: बालाजी स्पंज की फैक्ट्री के खिलाफ जनआक्रोश का विस्फोट

बालाजी स्पंज फैक्ट्री: अल्दा से उठी चिंगारी, अब 44 गांवों में ज्वालामुखी: बालाजी स्पंज की फैक्ट्री के खिलाफ जनआक्रोश का विस्फोट (Chhattisgarh Talk)
बालाजी स्पंज फैक्ट्री: अल्दा से उठी चिंगारी, अब 44 गांवों में ज्वालामुखी: बालाजी स्पंज की फैक्ट्री के खिलाफ जनआक्रोश का विस्फोट (Chhattisgarh Talk)

छत्तीसगढ़ के तिल्दा ब्लॉक में बालाजी स्पंज एंड गवर प्रा. लि. की फैक्ट्री के खिलाफ 44 गांवों का बड़ा जनविरोध, खेत, पानी और हवा बचाने की लड़ाई में ग्रामीणों की एकजुटता। जनसुनवाई से जनआक्रोश तक की पूरी कहानी पढ़ें।


धान का कटोरा नहीं बनेगा लोहा का कबाड़, खेत बचेंगे या धूल बिछेगी? – छत्तीसगढ़ के गांवों से उठी हुंकार

तिल्दा (रायपुर): छत्तीसगढ़ का तिल्दा ब्लॉक इन दिनों एक अभूतपूर्व जनविरोध की तपिश झेल रहा है। 25 अप्रैल को ग्राम अल्दा में बालाजी स्पंज एंड गवर प्राइवेट लिमिटेड की फैक्ट्री के लिए कराई गई पर्यावरणीय जनसुनवाई ने जिस आक्रोश को जन्म दिया, वह अब 44 गांवों की एकजुट लड़ाई में तब्दील हो गया है। सवाल सिर्फ एक उद्योग का नहीं, अब ये टकराव बन चुका है – औद्योगिक विकास बनाम कृषि अस्मिता, कॉरपोरेट विस्तार बनाम गांव की धड़कन


बालाजी स्पंज फैक्ट्री का 44 गांवों का विद्रोह: आंदोलन से उठी आवाज़, जनचेतना की हुंकार

जिस लोकसुनवाई को लेकर शुरुआत में सिर्फ कुछ गांवों का विरोध था, वह अब 44 गांवों के एकजुट आंदोलन में बदल गया है। ग्रामीणों ने साफ कहा है कि अगर प्रशासन और उद्योग मिलकर जनभावनाओं को कुचलने की कोशिश करेंगे, तो हर खेत से प्रतिरोध की मशाल निकलेगी

ग्रामीणों का कहना है कि लोकसुनवाई मात्र औपचारिकता थी। अल्दा सहित आसपास के गांवों ने विरोध दर्ज कराया था — न सिर्फ मौखिक बल्कि वीडियो और लिखित प्रमाणों के साथ। बावजूद इसके, कंपनी ने 23 अप्रैल को ही टेंट और साउंड सिस्टम लगाना शुरू कर दिया था, जिसे ग्रामीणों ने “पूर्वनियोजित नाटक” करार दिया।

बालाजी स्पंज फैक्ट्री; जनसुनवाई नहीं, जनआक्रोश था वो दिन

जनसुनवाई का मंच जैसे ही सजा, हजारों ग्रामीणों का सैलाब उमड़ पड़ा – अल्दा, तुलसी, सरफोंगा, बोरझीटी, भटभेरा जैसे गांवों से करीब 3-4 हजार ग्रामीण जुटे।
नारे लगे:
“हमें जीने दो”,
“हमारे खेत बचाओ”,
“फैक्ट्री नहीं चाहिए”,
“अधिकारी वापस जाओ”।

विरोध की आंधी में डूबी बालाजी स्पंज आयरन फैक्ट्री की जनसुनवाई: “फैक्ट्री नहीं लगने देंगे” की गूंज से थर्राया अल्दा गांव

महिलाओं ने दुपट्टे लहराए, युवाओं ने नारों से मंच को घेरा, और बुजुर्गों ने बैनर उठा सरकार और कंपनी को चेताया – “हम गांव बचाएंगे, फैक्ट्री नहीं लगने देंगे”


आगजनी की आड़ में साज़िश? FIR पर ग्रामीणों का फूटा गुस्सा

23 अप्रैल की रात को पंडाल में आग लग गई। कंपनी ने इसे आधार बनाकर अल्दा के ग्रामीणों पर एफआईआर दर्ज करवा दी। लेकिन ग्रामीणों का दावा है कि वे घटनास्थल पर थे ही नहीं, और यह पूरी तरह साजिश है।

“हम शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे। कंपनी ने खुद आग लगवाई ताकि हमें फँसाया जा सके।”
— उमाकांत वर्मा, ग्रामवासी

अब गांवों में चर्चा है कि क्या यह घटना जनविरोध को दबाने की पूर्व-रचित रणनीति थी?


प्रशासन चुप, जनता जागी

इस पूरे मामले में अब तक प्रशासन की ओर से कोई भी स्पष्ट जांच या कार्रवाई सामने नहीं आई है। नतीजतन, ग्रामीणों में गुस्सा और अविश्वास बढ़ता जा रहा है।
गांवों में बैठकें हो रही हैं, पंचायत स्तर पर प्रस्ताव पास किए जा रहे हैं और एक बड़े जनांदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है।


“धान का कटोरा रहेगा”: गांवों की घोषणा

44 गांवों के प्रतिनिधियों ने एकमत से ऐलान किया:

“हमारा छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है। अगर कोई इसे लोहा का कबाड़ बनाने की कोशिश करेगा, तो हम चुप नहीं बैठेंगे। ज़रूरत पड़ी तो जेल, धरना और बलिदान — सब कुछ होगा।”

यह आंदोलन अब सिर्फ पर्यावरण या रोजगार का सवाल नहीं, बल्कि ग्राम्य अस्मिता और आत्मनिर्भरता की लड़ाई बन चुका है।

टकेश्वर (किसान, अल्दा):
“सिलतरा को देखिए – काला धुआं, बंजर ज़मीन और बीमारियाँ। हम अपने खेत, हवा और पानी को मरते नहीं देख सकते।

मनोज (युवा किसान):
“पानी सूख जाएगा, खेती मरेगी। फिर हम क्या करेंगे? शहरों में पलायन करेंगे क्या?”

महिलाओं का ऐलान:
“जान दे देंगे, लेकिन फैक्ट्री नहीं लगने देंगे।”


ग्रामीणों की माँगें:

  1. FIR तत्काल वापस हो।
  2. प्रोजेक्ट को निरस्त किया जाए।
  3. निष्पक्ष उच्चस्तरीय जांच हो कि आगजनी के पीछे कौन था।
  4. जनसुनवाई प्रक्रिया की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
  5. प्रभावित क्षेत्र की सामाजिक, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समीक्षा करवाई जाए।

यह सिर्फ एक आंदोलन नहीं, भविष्य की दिशा है?

बालाजी स्पंज कंपनी के इस प्रोजेक्ट ने पूरे छत्तीसगढ़ के ग्रामीण विकास बनाम कॉरपोरेट विस्तार की बहस को तेज कर दिया है। सवाल यह नहीं कि एक कारखाना लगेगा या नहीं, सवाल यह है — क्या खेतों की हरियाली बचेगी या छत्तीसगढ़ की माटी पर लोहा भारी पड़ेगा?

Disclaimer: यह रिपोर्ट ग्रामीणों के बयानों, घटनाओं और स्थानीय स्रोतों पर आधारित है। Chhattisgarh Talk किसी भी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ पूर्वाग्रह नहीं रखता। फैक्ट्री प्रशासन या सरकारी पक्ष की प्रतिक्रिया प्राप्त होते ही हम उसे भी प्रकाशित करेंगे। इस रिपोर्ट का उद्देश्य समाज को सूचित करना और जनभावनाओं को निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करना है।


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