छत्तीसगढ़ टॉक, दंतेवाड़ा। बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी माई का दरबार दिलवाली के एक दिन पूर्व विशेष पूजा अर्चना की जाती है। दंतेश्वरी माई के दरबार की दिवाली खास क्यों होती है। यहां दिवाली से एक दिन पहले मंदिर में विशेष पूजा होती है। दशहरा पर्व में जगदलपुर से मां दंतेश्वरी की डोली दंतेवाड़ा लौटती है, उसके 9 दिन बाद पूर्व से ही दीपावली की शुरुआत हो जाती है, मां के दरबार को दीयों की रोशनी से सजाया जाता है।
मंदिर में जो दिये जलाएं जातें हैं कुम्हार बस्ती से कुम्हार दुवारा मां दंतेश्वरी मंदिर हर साल दिए जाते हैं यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है जिससे मंदिर प्रांगण सजाया जाता है।
सेवादारों में एक तुड़पा समाज का भी सेवादार होता है। तुड़पा समाज का सेवादार दिवाली से 9 दिन पहले से ही मां दंतेश्वरी सरोवर से रात के तीसरे पहर में पानी लाने के लिए निकल जाता है। मिट्टी के घड़े में दंतेश्वरी सरोहर से पुजा अर्चना कर 12 लकवारो के साथ जल जाता है।
हर साल दिपावली में जड़ी-बूटियों से बने काढ़ा से स्नान माता का कराया जाता यह परंपरा कतियार राउत में समाज के लोग निभाते हैं जंगल से जड़ी-बूटी खोजकर लाते हैं, फिर गई जड़ी बूटी को मिट्टी की हांडी में हल्की आंच पर उबाला जाता है, ज फिर उबाले गए जल को छानकर नि मां के स्नान के लिए लाए गए दंतेश्वरी सरोहर के पानी में मिलाया जाता है। और औषधि बनाने के बाद सभी 12 लंकवार सेवादारों को मिट्टी की हांडी में ये स दवा पीने के लिए परोसी जाती है, के बाकी की बची हुई औषधि को गांव वालों और भक्तों के बीच बांटा प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।