छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी गेज नदी बनी मौत की धारा! कब जागेगा प्रशासन?

छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी गेज नदी बनी मौत की धारा! कब जागेगा प्रशासन? (Chhattisgarh Talk)
छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी गेज नदी बनी मौत की धारा! कब जागेगा प्रशासन? (Chhattisgarh Talk)

छत्तीसगढ़ की गेज नदी में बह रहा ज़हर! दूषित पानी से 20,000 लोग बीमारियों के शिकार। प्रशासन की लापरवाही से संकट गहराया। जानिए पूरी रिपोर्ट।

✍️ हेमंत कुमार, कोरिया/MCB: कभी बैकुंठपुर की जीवनरेखा मानी जाने वाली गेज नदी आज ज़हरीली धारा बन चुकी है। नगर प्रशासन की लापरवाही, उदासीनता और भ्रष्टाचार के चलते नदी में सीवेज, मेडिकल वेस्ट, घरेलू कचरा और मल-मूत्र का अंबार लग गया है। इस भयावह स्थिति ने 20 वार्डों के 20,000 से अधिक निवासियों को दूषित पानी पीने को मजबूर कर दिया है, जिससे गंभीर बीमारियां तेजी से फैल रही हैं।

शहर का पूरा गंदा पानी बह रहा गेज नदी में, प्रशासन आंखें मूंदे बैठा

एक समय था जब गेज नदी का पानी मंदिरों में अभिषेक और धार्मिक कार्यों के लिए उपयोग होता था, लेकिन आज यह पानी छूने लायक भी नहीं बचा। शहर की सभी नालियों का गंदा पानी, टॉयलेट का मल-मूत्र, अस्पतालों का मेडिकल वेस्ट, प्लास्टिक और मांस के टुकड़े इस नदी में खुलेआम फेंके जा रहे हैं।

नगर प्रशासन की सफाई व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है।

  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है – गंदा पानी सीधे नदी में छोड़ा जा रहा है।
  • कचरा प्रबंधन फेल – घरों और अस्पतालों से निकलने वाला कचरा नदी के किनारे ही डंप किया जाता है।
  • मेडिकल वेस्ट से जहर घुल रहा पानी में – खून से सनी पट्टियां, इंजेक्शन, मलहम, प्लास्टिक और जहरीले अपशिष्ट नदी में बह रहे हैं।
  • शौचालयों का मल-मूत्र सीधे नदी में – हजारों कुंटल गंदगी हर दिन नदी में समा रही है।

नदी का पानी पीने से तेजी से फैल रहीं बीमारियां, बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित

विशेषज्ञों के अनुसार, गेज नदी के पानी में खतरनाक बैक्टीरिया और वायरस पनप रहे हैं, जो टाइफाइड, डायरिया, पीलिया, त्वचा रोग और पेट संक्रमण जैसी बीमारियों को न्योता दे रहे हैं। बच्चे, बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही हैं।

धार्मिक आस्था को भी लगा गहरा झटका, आचमन योग्य जल अब ज़हरीला

गेज नदी सिर्फ एक जलधारा नहीं, बल्कि शहर की आस्था और संस्कृति का प्रतीक रही है। सावन पूजा, छठ महापर्व, मरनी-भागवत, गणेश विसर्जन जैसे अनुष्ठानों में इस जल का विशेष महत्व था। लेकिन अब श्रद्धालु इसमें आचमन करने से भी डरते हैं।

NGT के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा प्रशासन

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के सख्त नियमों के बावजूद:
अशोधित (अनट्रीटेड) पानी को नदी में डालना गैरकानूनी है, फिर भी यह धड़ल्ले से हो रहा है।
मेडिकल और जैविक कचरे के निपटान के लिए विशेष व्यवस्था होनी चाहिए, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
प्लास्टिक और खतरनाक अपशिष्ट जलस्रोतों में डालना अपराध है, लेकिन नगर पालिका की निष्क्रियता साफ झलक रही है।

नेता बोले: “नगरवासियों की जिंदगी से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं!”

नगर पालिका परिषद में नेता प्रतिपक्ष अन्नपूर्णा प्रभाकर सिंह ने इस मुद्दे को लेकर प्रशासन को कई बार पत्राचार किया, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकाला गया। उन्होंने कहा:

“हर साल करोड़ों रुपए सफाई और जल आपूर्ति पर खर्च किए जाते हैं, फिर भी नगरवासियों को पीने तक का स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा। यह सरासर प्रशासन की नाकामी है। अब अगर इस मुद्दे पर कार्रवाई नहीं हुई, तो हम सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे!”

नगरवासियों में बढ़ता आक्रोश, क्या प्रशासन की नींद खुलेगी?

स्थानीय लोगों में प्रशासन के खिलाफ भारी रोष है। कुछ जागरूक नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नदी बचाने की मुहिम छेड़ने का निर्णय लिया है। सवाल उठता है:

क्या प्रशासन अब भी अपनी नींद तोड़ेगा?
क्या नगरवासियों को खुद सड़कों पर उतरकर आंदोलन करना पड़ेगा?
क्या आने वाली पीढ़ियां इस नदी को केवल तस्वीरों में देखेंगी?

अगर अब भी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो गेज नदी एक मृत जलधारा में बदल जाएगी, जिसका खामियाजा पूरे नगरवासियों को भुगतना पड़ेगा। अब समय आ गया है कि प्रशासन इस पर तुरंत कार्यवाही करे, वरना बैकुंठपुर की यह ऐतिहासिक नदी इतिहास बन जाएगी!

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