कोरबा के सोनपुरी गांव में स्थित अर्जुन साहू की दुकान पर आज भी 5, 10, 20 और 25 पैसे के सिक्के स्वीकार किए जाते हैं। जानें कैसे ये पुराने सिक्के बच्चों के चेहरों पर मुस्कान लाते हैं और अर्जुन साहू की दुकान में खुशियों का कारण बनते हैं।
भूपेंद्र साहू, कोरबा: पुराने समय के सिक्के अब लगभग हर जगह अनुपयोगी हो चुके हैं। भारत सरकार ने 5, 10, 20 और 25 पैसे के सिक्कों की ढलाई बंद कर दी है और ये सिक्के अब प्रचलन में नहीं हैं। हालांकि, छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में एक ऐसा स्थान है जहां ये सिक्के आज भी स्वीकार किए जाते हैं। यह जगह है सोनपुरी गांव में स्थित अर्जुन साहू की छोटी सी किराने की दुकान, जहां बच्चे और बड़े, पुराने सिक्कों के बदले टॉफी और चॉकलेट लेकर खुश होते हैं।
कोरबा के सोनपुरी में चलते हैं पुराने सिक्के
आज के समय में जहां लोग 10 रुपये के सिक्के तक स्वीकार नहीं करते, वहीं कोरबा जिले के सोनपुरी गांव में अर्जुन साहू की दुकान पर 5, 10, 20 और 25 पैसे के सिक्के दिन-प्रतिदिन स्वीकार किए जाते हैं। यह दुकान एक अजनबी सा स्थान बन चुकी है, जहां पुराने सिक्कों के बदले सामान मिलता है। अर्जुन साहू का मानना है कि सिक्कों को स्वीकार करने का कोई बड़ा उद्देश्य नहीं है, बल्कि वह बस बच्चों को खुश करने के लिए यह करते हैं।
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कोरबा: जहां चलते हैं पुराने सिक्के – 5, 10, 20 और 25 पैसे, क्यों इन सिक्कों को लेते हैं अर्जुन साहू
अर्जुन साहू बताते हैं, “इन सिक्कों का मेरे पास कोई कलेक्शन नहीं है और न ही मैं इन्हें किसी ऊंची कीमत पर बेचने का इच्छुक हूं। बस बच्चों का मन रखने के लिए सिक्कों को ले लेता हूं। जब बच्चे 5, 10, 20 या 25 पैसे का सिक्का लाते हैं, तो मैं उन्हें टॉफी दे देता हूं। इन सिक्कों को कोई और जगह नहीं लेता, लेकिन बच्चों को खुशी मिलती है और मुझे भी संतुष्टि मिलती है।”
अर्जुन साहू ने यह भी बताया कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो ये सिक्के दान के रूप में दिए जाते हैं और धार्मिक आयोजनों में भी इनका उपयोग किया जाता है। उनका कहना है, “मैं इन सिक्कों को दान कर देता हूं, जब कोई व्यक्ति गांव में गुजर जाता है। यह धार्मिक कार्यों में भी काम आते हैं।”
कोरबा: यादगार के रूप में रखे जाते हैं पुराने सिक्के
अर्जुन के बेटे अर्पित बताते हैं, “हमने कुछ सिक्कों को यादगार के रूप में रखा है। आने वाली पीढ़ी को दिखाने के लिए हम यह सिक्के बचाकर रखेंगे, ताकि वे जान सकें कि हमारे समय में ऐसे सिक्के हुआ करते थे। इन सिक्कों का कोई खास उद्देश्य नहीं है, बस बच्चे इन्हें लेकर आते हैं और बदले में टॉफी ले जाते हैं।”
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कोरबा में एक ऐसी दुकान, जहां पुराने सिक्के बन जाते हैं बच्चों के लिए खुशी का कारण
20 पैसे का सिक्का लेकर दुकान पर पहुंचे नन्हे कृष्ण का कहना है, “यह सिक्का अब कहीं नहीं चलता, लेकिन इस दुकान पर हम इसे लेकर आते हैं और बदले में टॉफी मिल जाती है। आसपास के इलाकों में केवल यहीं यह सिक्के स्वीकार होते हैं।”
कोरबा: इसी दुकान में चलते हैं 10-20 पैसे के सिक्के
इस तरह से अर्जुन साहू की दुकान पर पुराने सिक्के अब भी बच्चों की खुशी का कारण बने हुए हैं। जहां एक ओर ये सिक्के प्रचलन से बाहर हो चुके हैं, वहीं यह दुकान उन्हें एक नई पहचान दे रही है। अर्जुन साहू की यह पहल न केवल बच्चों को खुशी देती है, बल्कि एक पुरानी याद को भी संजोने का एक सुंदर तरीका है।
कोरबा के अर्जुन साहू का अनोखा संदेश
अर्जुन साहू की इस पहल से यह स्पष्ट होता है कि पुराने और अप्रचलित चीजों को भी यदि सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो वे एक नई पहचान पा सकती हैं। बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने का कोई मूल्य नहीं होता, और अर्जुन साहू ने इसे बेहद साधारण लेकिन दिल को छूने वाले तरीके से सिद्ध किया है।
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