बारनवापारा अभ्यारण्य में टाइगर की वापसी से हलचल, लेकिन ChhattisgarhTalk की पड़ताल में सामने आई वन विभाग की लापरवाही.. 50 जंगली जानवरों की मौत
रायपुर: छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले के बारनवापारा अभयारण्य में एक बार फिर “जंगल के असली राजा” की वापसी से हलचल मच गई है। बारनवापारा अभयारण्य फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह रोमांच नहीं, बल्कि सवाल है—क्या वन विभाग वाकई जंगलों की रक्षा कर रहा है या सिर्फ रिपोर्टों में संरक्षण दिखा रहा है? जहां एक ओर बाघ की मौजूदगी को लेकर उत्साह है।
वहीं दूसरी तरफ ChhattisgarhTalk.com की पड़ताल में जो सामने आया, उसने वन विभाग की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। पिछले तीन वर्षों में यहां 50 से अधिक जंगली जानवरों की मौतें शिकार, करंट और लापरवाही की भेंट चढ़ चुकी हैं।
जंगली जानवरों की मौत और अब टाइगर की दस्तक, विभाग का हड़कंप
वन विकास निगम क्षेत्र में हाल ही में बाघ के मूवमेंट की पुष्टि हुई है। सूत्रों के अनुसार, यह बाघ पड़ोसी राज्य के जंगलों से यहां पहुंचा है। पिछले सप्ताह वन विकास निगम क्षेत्र में फील्ड टीम ने जब जंगल के भीतर गश्त की, तो उन्हें कुछ ताजा पंजों के निशान दिखाई दिए। शुरू में इसे सामान्य जानवर समझा गया, लेकिन आकार और गहराई देखकर टीम ने अनुमान लगाया कि यह किसी परिपक्व नर बाघ का है। बाद में कैमरा ट्रैप से जो तस्वीरें मिलीं, उन्होंने इस शक को यकीन में बदल दिया — “बारनवापारा में टाइगर-2 की वापसी हो चुकी है।” लेकिन फिलहाल किसी भी तरह का आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है।
यानी बाघ है — लेकिन विभाग इसे मानने में झिझक रहा है। पर सवाल यह है कि क्या विभाग बाघ की सुरक्षा के लिए तैयार है, जबकि छोटे जानवर तक सुरक्षित नहीं हैं?
लेकिन सवाल यह है कि क्या वन विभाग इसके लिए तैयार है? क्योंकि जहां दहाड़ है, वहां जिम्मेदारी भी है — और इस बार विभाग की चुप्पी सवालों के घेरे में है।
तीन साल में 52 मौतें… जंगल के भीतर का सच
वन विभाग के ही DFO द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट ChhattisgarhTalk.com को मिली है, जिसमें पिछले तीन वर्षों में वन्यप्राणियों की मौतों का ब्योरा दर्ज है—
वर्ष 2023:
- कुल मौतें – 15
- आवारा कुत्तों के हमले से – 8
- प्राकृतिक कारण – 2
- बीमारी से – 2
- अज्ञात कारण – 3
वर्ष 2024:
- कुल मौतें – 22
- आवारा कुत्तों के हमले से – 4
- वन्यप्राणियों के हमले से – 3
- प्राकृतिक कारण – 4
- पानी में डूबने से – 1
- अज्ञात कारण – 6
- आपसी लड़ाई – 1
- अवैध शिकार – 2
- वाहन दुर्घटनाओं से – 1
वर्ष 2025:
- कुल मौतें – 15
- आवारा कुत्तों के हमले से – 3
- वन्यप्राणियों के हमले से – 3
- प्राकृतिक कारण – 2
- बीमारी से – 1
- अज्ञात कारण – 4
- अवैध शिकार – 1
- वाहन दुर्घटनाओं से – 1
कुल मिलाकर — 52 मौतें, और इनमें से ज्यादातर विभाग की निगरानी में हुईं।
जंगली जानवरों की मौत: बाघ तो आया, पर जंगल खाली क्यों हो रहा है?
बारनवापारा अभयारण्य में बाघ की मौजूदगी संरक्षण के लिहाज से खुशी की बात जरूर है, लेकिन सवाल ये है कि अगर पारिस्थितिकी इतनी बेहतर है, तो इतने वन्यजीव क्यों मर रहे हैं?
गांवों से सटे जंगलों में करंट बिछाकर शिकार करना आम बात हो गई है। कई बार स्थानीयों ने इन घटनाओं की शिकायत की, लेकिन कार्रवाई केवल कागजों में दर्ज हुई। वहीं, कुछ वन परिक्षेत्रों में महीनों से गश्त नहीं हुई। अधिकारियों की बैठकें और रिपोर्टें तो बनती हैं, पर जंगलों में कोई नहीं पहुंचता।
एक था टाइगर (2024): वही जंगल, वही कहानी, लेकिन सबक नहीं
यह कोई पहली बार नहीं है जब बारनवापारा में बाघ की मौजूदगी दर्ज हुई है।
- 10 अप्रैल 2024 को मीडिया ने सबसे पहले “एक था टाइगर” शीर्षक से इसी जंगल की कहानी दुनिया के सामने रखी थी।
- 7 मार्च को तब सबसे पहले शिक्षक कांशीराम पटेल ने सिरपुर रोड के पास बाघ को देखा था और वीडियो बनाकर विभाग को भेजा था। पहले तो अधिकारियों ने इसे हल्के में लिया, लेकिन जैसे ही वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, प्रशासन हरकत में आया।
- उस समय के कलेक्टर कुमार लाल चौहान ने तुरंत 7 गांवों में धारा 144 लगाई गई, टीम गठित की गई, और बाघ की सुरक्षा के लिए SOP (Standard Operating Procedure) लागू की गई।
- बाद में टाइगर की रैस्क्यू कर उसे ट्रेंकुलाइज कर गुरु घासीदास-तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व भेज दिया गया।
- वह बाघ “एक था टाइगर” के नाम से प्रसिद्ध हुआ। और अब, नवंबर 2025 में, उसके बादली रूप “टाइगर-2” ने जंगल में कदम रखा है।
अब ठीक एक साल बाद, फिर वही कहानी दोहराई जा रही है। फर्क बस इतना है कि इस बार विभाग पहले से अलर्ट दिखना चाहता है। लेकिन क्या सिस्टम की लापरवाही सचमुच बदली है?
जंगली जानवरों की मौत: जंगल में दो-दो खतरे: बाघ भी, हाथी भी
फिलहाल बारनवापारा के जंगलों में 28 हाथियों का दल सक्रिय है।
इसी बीच बाघ का प्रवेश विभाग के लिए “दोहरी परीक्षा” बन गया है।
कुछ दिन पहले हरदी गांव में हाथी के हमले से एक किसान की मौत हुई थी, और तीन हाथी कुएं में गिर गए थे। अब उसी इलाके में टाइगर मूवमेंट दर्ज होना पूरे तंत्र के लिए चुनौती है।
वन विभाग की एक टीम के सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा – “हम बाघ की सुरक्षा करें या हाथियों को संभालें — दोनों एक साथ चुनौती हैं। संसाधन सीमित हैं, और स्टाफ की भारी कमी है।”
आपका न्युज में कुछ बातें तों सही है, पर बाघ शहरों को लांघकर 500 किलोमीटर कि दुरी तय कर इस जंगल में कैसे आ जाता है। कही वन विभाग विस्थापन कराने के चक्कर से बाघ को गुपचुप तरिके से छोड़ नही रही है। पहले बाघ कि तरह दुसरे बाघ को भी उसी क्षेत्र में बताया जा रहा है। पर्यटन को बढ़ाने के उद्देश्य से भी बाघ छोड़ा जा रहा है। काला हिरण, मगरमच्छ, लाल बंदर, वनभैंसा, पर्यटन को बढ़ाने के उद्देश्य से लाया जा रहा है। -संतोष कुमार ठाकुक, मुड़पार, बारनवापारा
“सुरक्षित वातावरण” का दावा, लेकिन गश्त का सच
ChhattisgarhTalk की जांच में सामने आया कि जिन इलाकों में कैमरा ट्रैप और गश्त का दावा किया गया है, वहां कई कैमरे महीनों से बंद पड़े हैं। कुछ इलाकों में पेट्रोलिंग लॉगबुक में रोजाना “सामान्य” एंट्री होती है, लेकिन स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि “टीमें सिर्फ सड़कों तक जाती हैं, जंगल के अंदर नहीं।”
“रात में शिकारियों की आवाज आती है। कुत्तों की चीख और फंदे की आवाज सुनाई देती है। लेकिन कोई नहीं आता। अब बाघ आया है तो हमें ही जंगल में जाने से रोका जा रहा है।” -गांव हरदी, टुंड्रा, और लोहाडीह के ग्रामीणों ने बताया
हरदी और धमनी गांव के ग्रामीणों ने बताया कि पिछले महीनों में कई बार हाथियों और अन्य वन्यजीवों के हमले हुए, लेकिन वन विभाग हमेशा देरी से पहुंचा।
“जब हाथियों ने एक ग्रामीण को मार दिया था, तब कोई अधिकारी मौके पर नहीं आया, लेकिन जब 3 हाथी कुवें में गिरे तब पूरा वन विभाग की अमल आ गयीं थी। क्या हम इंसानों की जान की कीमत नही? — यह कहना है हरदी के किसान महेश ध्रुव का।
वन विभाग पर सवाल – मौतों का हिसाब कौन देगा?
जब पिछले तीन साल में 50 से अधिक जानवर मारे गए, तो विभाग ने कितने मामलों में गिरफ्तारी की?
जवाब मिला — “केवल तीन।”
इनमें से दो आरोपी मामूली जुर्माना भरकर जमानत पर छूट चुके हैं।
किसी भी बीटगार्ड या रेंजर पर जिम्मेदारी तय नहीं की गई।
यह वही विभाग है जो हर साल “वन्यजीव सप्ताह” पर संरक्षण की शपथ लेता है, लेकिन फाइलों में “अज्ञात कारणों” से मौतें लिखकर जांच बंद कर देता है।
वन विभाग की सफाई — “सब नियंत्रण में है”
नाम नही छापने की शर्त में बताया कि, हमें टाइगर मूवमेंट की जानकारी मिली है। इलाके में कैमरा ट्रैप, पेट्रोलिंग और सर्च बढ़ाई गई है। सभी मौतों की जांच होती है और रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेजी जाती है।
पर सवाल यह है — जब 50 से ज्यादा वन्यजीव लगातार मर रहे हैं, तो क्या विभाग की ये जांचें सिर्फ फाइलों में सिमटकर रह गई हैं?
पर सवाल यह है कि जब हर साल इतनी मौतें हो रही हैं, तो क्या यह वन्यजीव संरक्षण है या वन्यजीव विनाश?
शिकारियों की सक्रियता और ‘कागज़ी सुरक्षा’
वन विभाग के कई इलाकों में शिकारियों ने फंदे, करंट वायर और ज़हर तक का इस्तेमाल किया। कुछ स्थानीय सूत्रों के मुताबिक,
“वनरक्षक केवल सड़क किनारे गश्त करते हैं। जंगल के भीतर महीनों तक कोई नहीं जाता। जहां बाघ घूम रहा है, वहां के कई कैमरे बंद पड़े हैं।”
जंगल के बीचोंबीच कई बार पेड़ों पर कटे तार, मवेशियों के शव और करंट बिछे तारों के निशान मिले हैं। लेकिन इन पर कभी गंभीर एफआईआर नहीं हुई।
बाघ लौटा है, अब विभाग की परीक्षा शुरू
बारनवापारा की मिट्टी ने दोबारा शेर का स्वागत किया है। लेकिन यह स्वागत तभी मायने रखेगा जब यह जंगल बाघ के लिए सुरक्षित घर बन सके। फिलहाल हालात ये हैं कि
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गश्त फाइलों में,
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जांच अज्ञात कारणों में,
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और जिम्मेदारी “प्रक्रिया जारी” में अटकी है।
ChhattisgarhTalk.com की यह पड़ताल साफ करती है —
“एक था टाइगर” सिर्फ कहानी नहीं, एक चेतावनी हैं। अगर सिस्टम ने अब भी सबक नहीं सीखा, तो “टाइगर–2” की कहानी भी बारनवापारा के जंगलों में नहीं, फाइलों में खत्म हो जाएगी।
जब तक विभाग जमीन पर जिम्मेदारी नहीं निभाएगा, तब तक ये ‘वापसी’ सिर्फ कागजों तक ही सीमित रहेगी। वन्यजीव संरक्षण का मतलब सिर्फ प्रेस नोट और फोटो सेशन नहीं, बल्कि हर उस जीवन की रक्षा है जो जंगल को जीवित रखता है।
रिपोर्ट: चंद्रकांत वर्मा, संपादक – ChhattisgarhTalk.com
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