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महिला दिवस पर विशेष!! बूढ़े हाथ छैनी हथौड़ी से लकड़ी में डाल रहे जान–लकड़ी में जिन्दगी उकेरती शांतिबाई, महानगरों में है चर्चा

महिला दिवस पर विशेष!! बूढ़े हाथ छैनी हथौड़ी से लकड़ी में डाल रहे जान–लकड़ी में जिन्दगी उकेरती शांतिबाई, महानगरों में है चर्चा
महिला दिवस पर विशेष!! बूढ़े हाथ छैनी हथौड़ी से लकड़ी में डाल रहे जान–लकड़ी में जिन्दगी उकेरती शांतिबाई, महानगरों में है चर्चा

महिला दिवस पर विशेष!! बूढ़े हाथ छैनी हथौड़ी से लकड़ी में डाल रहे जान–लकड़ी में जिन्दगी उकेरती शांतिबाई, महानगरों में है चर्चा

महिला दिवस पर विशेष

रामकुमार भारद्वाज/कोण्डागांव न्यूज: कहते है कला किसी की मोहताज नहीं होती. मन में लगन हो तो किसी भी क्षेत्र में महारत हासिल किया जा सकता है इसे साबित कर रही कोण्डागांव जिले की एक महिला शिल्पी। जिसने कभी जिंदगी में स्कुल में कदम नहीं रखा पर आज उसकी बनाई कलाकृति की मांग देश के महानगरों में है।

महानगरों में है शांतिबाई के शिल्पकारी की चर्चा

महिला शिल्पी शांतिबाई जिनके हुनर के चर्चे आज बड़े बड़े महानगरों में है। एक ऐसी महिला शिल्पी जिसने ना किसी शिल्प कला की ट्रेनिग लिय ना कभी स्कूल गयी। वैसे तो लकड़ी की मूर्ति हर कोई बनाता है पर शांतिबाई इन बेजान लकड़ियों में अपनी कला के माध्यम से जान डालती है शांतिबाई 30 साल से लकड़ी मे आकृति बनाने का कार्य करती आ रही है, शांतिबाई आज तक 30 से ज्यादा खम्बो मे जिंदगी उकेर चुकी है।

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अशिक्षित है पर देती है शिक्षा

शांतिबाई आज तक स्कुल में कदम नहीं रखा है. पर उसकी शिल्प कला पढ़े लिखे लोगों को शिक्षा देती है. बचपन में पत्थर के शिल्पियों के साथ हेल्पर के रूप में काम किया, आज उसकी दक्ष हाथ काष्ठकला में जिन्दगी के उतार चढ़ाव को उकेरते है। शांति बाई के कलाकारी में ना कोई मार्डन आर्ट है और ना ही कोई कालपनिक कला, जो उसने भूत भविष्य और वर्तमान में देखा है देख रही है और जो देख चुकी है उसे अपने कला में उकेर रही है और लोगो को एक संदेश दे रही है की जीवन में उतार चढ़ाव आते रहता है पर इन्सान से लेकर हर प्राणी के लिए पर्यावरण कितना जरूरी है।

पर्यावरण पर है ध्यान

आज पर्यावरण बचाने के लिए जोर दिया जाता है पर हम पढ़े लिखे लोग पर्यावरण का ध्यान नहीं देते वही शान्ति बाई पर्यावरण का पूरा धयान रखती है शान्ति बाई ने जंगल में पेड़ से टूटकर गिरी लकडियो का उपयोग करती या मिल से खरीद कर लाती है पर पेड़ नहीं काटती, उसके बनाये खम्भे की प्रदर्शनी मुम्बई में होती है, हम शिक्षित लोग पर्यावरण संरक्षण को लेकर ज्यादा नहीं सोचते है वहीं शान्ति बाई जिसने कभी स्कुल का मुंह नहीं देखा वह पर्यावरण को बचने की सोच रखती है वह और उनकी कला काबिले तारीफ है.

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कठिन है खम्भा आर्ट

काष्ठ कला तो कोई भी कर लेता है छोटी छोटी लकड़ियों से मुर्तिया बनाना आसान है पर लकड़ी के लट्ठे या खम्बे पर कला कारी करना काफी कठिन है खम्भे की कलाकारी काफी मेहनत भरी होती है एक खम्भे को तैयार करने में पांच महीने लगते है. दिन-रात पेड़ के मोटे मोटे तने पर पेन्सिल से डिजाइन बनाना फिर उसके बाद उसे छिनी हथौड़ी से आकार देना, और आखिरी में इसे फिनिशिंग टच के बाद मांग के अनुसार महानगरों में भेजना. जब जिस कीमत पर उसकी बिक्री होती है उसके हिसाब से शांति बाई को मेहनताना मिलता है. जो भी मिलता है शान्ति बाई उसमे ही संतोष कर नए काम की शुरुवात करती है ।

शान्ति बाई की कला को देखते हुए शहर वासी भी तारीफ़ करते है, शान्ति बाई को जानने वालो ने कहा शान्ति बाई की पूरी जिंदगी संघर्ष भरी है. ये ऐसी कलाकर है जिनकी कला बड़े बड़े महानगरो में दिखती है ये उनके लिए शिक्षाप्रद है जो काम को छोटा बड़ा कहते है।

 

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