सोनाखान वन क्षेत्र में अवैध कटाई पर ETV भारत की खबर के बाद विवाद गहराया। DFO गणवीर धम्मशील के खंडन और विरोधाभासी बयानों से उठे सवाल…
केशव साहू, रायपुर: बलौदाबाजार जिले के वन मंडल में इस समय अजीब स्थिति बन गई है। सोनाखान वन परिक्षेत्र में अवैध पेड़ कटाई के खुलासे के बाद वनमंडल अधिकारी (DFO) गणवीर धम्मशील खुद अपने ही बयानों में उलझते नजर आ रहे हैं। एक ओर उन्होंने मीडिया से बातचीत में जांच की बात कही, वहीं दूसरी ओर वनमंडल कार्यालय से जारी प्रेस नोट में खबर को “भ्रामक और मिथ्या” बताया गया है।
5 नवंबर को ETV भारत की रिपोर्ट में सोनाखान क्षेत्र के जंगलों में अवैध कटाई और वनकर्मियों की लापरवाही का खुलासा किया गया था। इस रिपोर्ट के बाद विभाग में हलचल मच गई। वनमंडलाधिकारी (DFO) गणवीर धम्मशील ने न केवल खबर का खंडन किया, बल्कि बाकायदा वनमंडल कार्यालय के लेटरहेड पर हस्ताक्षरित प्रेस नोट जारी किया।
मामला तब और दिलचस्प हो गया जब 5 नवंबर को ETV भारत की पड़ताल के बाद 7 नवंबर को DFO गणवीर धम्मशील ने खुद अपने हस्ताक्षर से खंडन जारी कर दिया। लेकिन यह खंडन कई नए सवालों को जन्म दे गया—क्योंकि वही DFO पहले मीडिया के कैमरे पर जांच की बात कह चुके थे, और अब वही “अवैध कटाई नहीं हुई” का दावा कर रहे हैं।
ETV भारत की 5 नवंबर की रिपोर्ट ने खोली थी कटाई की हकीकत
5 नवंबर 2025 को ETV भारत ने एक विस्तृत ग्राउंड रिपोर्ट प्रकाशित की थी —“सोनाखान के जंगल में अवैध कटाई, ठूंठ बता रहे लूट की कहानी, अफसर बोले करेंगे कार्रवाई”
इस रिपोर्ट में झालपानी और पठियापाली बीट में कई जगहों पर अवैध रूप से कटे पेड़ों के ठूंठ दिखाए गए थे। ठूंठों पर न तो हेमरिंग थी, न कोई ड्रेसिंग, जिससे स्पष्ट था कि इन पर निरीक्षण नहीं हुआ था। ग्रामीणों ने भी बताया कि लकड़ी तस्कर रात के समय जंगल में घुसते हैं और वाहन में लकड़ी ले जाते हैं।
DFO ने माना—कटाई की जानकारी मिली, जांच होगी
जब ETV भारत ने यह वीडियो और तस्वीरें DFO गणवीर धम्मशील को दिखाईं, तो उन्होंने साफ कहा था –
DFO गणवीर धम्मशील ने कहा कि अभी आपके माध्यम से पता चला है। कुछ क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई दिख रही हैं। कुछ ठूंठ आपके द्वारा दिखाया गया हैं, तो उसको मैं संज्ञान में लेते हुए जांच के लिए SDO को अधिकृत करता हूं। जांच होगी उसके बाद में निष्कर्ष सामने आएंगे. अगर अवैध कटाई हुई है तो जांच कर विधिवत कार्यवाही करेंगे- गणवीर धम्मशील, DFO (यह बयान ETV भारत की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दर्ज है)
यह बयान खुद DFO का था, और यही वह क्षण था जिसने विभागीय हलचल तेज कर दी। DFO ने मौके पर उप वनमंडलाधिकारी (SDO) को जांच का जिम्मा सौंपने की बात कही थी।
लेकिन दो दिन बाद आया प्रेस नोट — जिसमें कहानी पलट गई
खंडन प्रेस रिलीज़ ने बढ़ाई उलझन
5 नवंबर को खबर प्रसारित होने के दो दिन बाद, 7 नवंबर को वन विभाग ने आधिकारिक लेटरपैड पर एक प्रेस नोट जारी किया। उसमें लिखा गया कि:
“सोनाखान रेंज के झालपानी और पठियापाली बीट में नियमित गश्त की जाती है। समाचार में बताए गए ठूंठ पुराने हैं, जिन पर पहले ही हेमर निशान लगाया जा चुका है। हाल में किसी भी प्रकार की नई अवैध कटाई नहीं मिली।”
प्रेस नोट में यह भी कहा गया कि —
- झालपानी बीट का निरीक्षण 22 अक्टूबर 2025 को किया जा चुका था।
- पठियापाली बीट का निरीक्षण 31 अक्टूबर 2025 को हुआ था।
- 6 नवंबर को प्रशिक्षु वन क्षेत्रपाल नवीन वर्मा और परिसर रक्षी (बिट गार्ड) हरगोविंद जायसवाल (जो जहाँ जहाँ पेड़ कटाई हुई है उसे क्षेत्र का वन रक्षक हैं) द्वारा स्थल निरीक्षण कर पुष्टि की गई कि नई अवैध कटाई नहीं हुई है।
लेकिन सवाल यह है कि अगर 22 अक्टूबर और 31 अक्टूबर को बीट निरीक्षण पहले ही हो चुका था, तो 3 नवंबर को ETV भारत की टीम को इसकी जानकारी क्यों नहीं दी गई? और फिर, जब DFO खुद बाइट में जांच के आदेश दे रहे थे, तब यह “पहले से निरीक्षण” की बात क्यों नहीं कही गई? यानी, विभाग ने जिस जांच की बात रिपोर्ट में कही थी, उसी को कुछ दिन बाद “पहले से किए गए निरीक्षण” का हवाला देकर नकार दिया।
उसे क्षेत्र के प्रशिक्षु वन क्षेत्रपाल और बीटगार्ड से कराई गई जांच: DFO के बयान और खंडन में विरोधाभास
खंडन में यह भी लिखा गया कि “स्थल निरीक्षण प्रशिक्षु वन क्षेत्रपाल नवीन वर्मा और परिसर रक्षी (बिट गार्ड) हरगोविंद जायसवाल (जो जहाँ जहाँ पेड़ कटाई हुई है उसे क्षेत्र का वन रक्षक हैं) द्वारा किया गया।”
यानी जिस मामले में DFO ने खुद उप वनमंडलाधिकारी को जांच के लिए अधिकृत बताया था, उस जांच को प्रशिक्षु कर्मियों और एक रक्षी से करा दिया गया। यही विरोधाभास अब विभाग की साख पर सवाल बन गया है।
DFO के बयानों में विरोधाभास
मीडिया से बातचीत में DFO गणवीर धम्मशील ने कहा था –
“अभी आपके माध्यम से जानकारी मिली है… जांच के लिए SDO को अधिकृत कर रहा हूं।”
लेकिन प्रेस रिलीज़ में वही अधिकारी लिखते हैं कि
“क्षेत्र में किसी प्रकार की अवैध कटाई या लकड़ी परिवहन की पुष्टि नहीं हुई है। 22 और 31 अक्टूबर को बीट निरीक्षण हो चुका था।”
दोनों बयानों में सिर्फ दो दिनों का फर्क है, लेकिन रुख पूरी तरह उल्टा। यही कारण है कि स्थानीय पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अब वन विभाग की “जांच प्रक्रिया” की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं।
अब सवाल उठता है —
- अगर 22 और 31 अक्टूबर को निरीक्षण पहले से किया जा चुका था, तो 3 नवंबर को जब पत्रकारों ने सवाल पूछे, तब यह जानकारी क्यों नहीं दी गई?
- अगर निरीक्षण की रिपोर्ट पहले से मौजूद थी, तो DFO ने 5 नवंबर को “अभी पता चला” क्यों कहा?
- और अगर निरीक्षण पहले से हुआ था, तो 6 नवंबर को प्रशिक्षु क्षेत्रपाल और परिसर रक्षी से दोबारा स्थल निरीक्षण करवाने की जरूरत क्यों पड़ी?

इन विरोधाभासी बातों से यह साफ है कि विभाग दबाव में आकर मीडिया रिपोर्ट के बाद स्थिति संभालने की कोशिश में उलझ गया।
जांच के लिए SDO को कहा, लेकिन भेजे गए प्रशिक्षु
DFO ने मीडिया में कहा कि उन्होंने SDO को जांच के लिए अधिकृत किया है, लेकिन खंडन पत्र में लिखा गया कि “प्रशिक्षु वन क्षेत्रपाल नवीन वर्मा और परिसर रक्षी (बिट गार्ड) हरगोविंद जायसवाल (जो जहाँ जहाँ पेड़ कटाई हुई है उसे क्षेत्र का वन रक्षक हैं) द्वारा स्थल निरीक्षण किया गया।”
यानी, जांच का जिम्मा जिस अधिकारी को दिया गया बताया गया था, मौके पर वह मौजूद ही नहीं थे। यह न केवल प्रक्रियागत विसंगति है, बल्कि विभागीय पारदर्शिता पर भी सवाल खड़ा करती है।
क्या पहले से पता था कि मीडिया सवाल पूछेगी?
एक और रोचक बात यह है कि प्रेस नोट में सिर्फ झालपानी और पठियापाली बीट का ही जिक्र है: वही दो जगहें जिनकी रिपोर्ट ETV भारत ने प्रकाशित की थी। बाकी चार रेंजों या बीटों की कोई जानकारी नहीं दी गई।
अब सवाल उठता है:
- क्या विभाग को पहले से पता था कि मीडिया इन्हीं दो बीटों पर सवाल पूछेगी?
- अगर नहीं, तो बाकी बीटों की जांच क्यों नहीं हुई?
क्या सिर्फ मीडिया रिपोर्ट को खारिज करने के लिए यह “संपूर्ण निरीक्षण” दिखाया गया?
ETV भारत ने 3 नवंबर को ही दी थी पूरी जानकारी
महत्वपूर्ण यह है कि ETV भारत ने 3 नवंबर को ही DFO गणवीर धम्मशील को पूरी जानकारी दे दी थी। वीडियो फुटेज, लोकेशन और तारीख सहित सभी साक्ष्य प्रस्तुत किए गए थे। इसके बावजूद विभाग ने 5 दिन तक कोई कार्रवाई नहीं की और जब खबर प्रकाशित हुई, तब जाकर 7 नवंबर को प्रेस नोट जारी कर खंडन किया।
यानी, मीडिया रिपोर्ट के पहले न तो जांच की गई और न कोई जवाब दिया गया। कार्रवाई की बजाय खंडन जारी करना, विभाग की कार्यशैली पर गहरा सवाल उठाता है।
चीतल की मौत पर कार्रवाई, लेकिन सूचना देने में देरी
ETV भारत ने हाल ही में चीतल की मौत पर भी विभाग से जानकारी मांगी थी। इस मामले में दो वनरक्षकों को निलंबित किया गया, लेकिन जब पत्रकारों ने पूछा कि —
- पिछले कुछ सालों में कितने जानवर प्राकृतिक कारणों या बीमारी से मरे?
- कितने जानवर शिकारियों के हाथों मारे गए?
- बीमार जानवरों का इलाज कहां और कैसे होता है?
तो DFO ने चार दिनों तक लगातार जानकारी देने का आश्वासन दिया, लेकिन कोई आधिकारिक रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई। दिन में दो-दो बार कॉल, मैसेज और मुलाकात कर सामने से बोलने के बावजूद कोई दस्तावेज और जानकारी नहीं भेजे गए।
लेकिन जब खबर प्रकाशित हुई, उसके बाद ही शुक्रवार देर रात विभाग ने सूचना भेजी। इस बीच DFO ने सोनाखान मामले का खंडन जारी कर दिया।— यह दर्शाता है कि विभाग पारदर्शिता से बचने की कोशिश करता है।
DFO का रवैया: “मैं बोल रहा हूं, कागज क्यों चाहिए?”
दस्तावेज़ों की मांग पर DFO गणवीर धम्मशील का जवाब भी चर्चा में है।
जब पत्रकारों ने आधिकारिक जांच रिपोर्ट, निलंबन आदेश और कार्रवाई की कॉपी मांगी, तो DFO का जवाब था —
“मैं बाइट दे रहा हूं, मैं बोल रहा हूं — मैं जिम्मेदार अधिकारी हूं, आपको कागज क्यों चाहिए? मेरे बोलने पर यकीन नही है क्या?”
यह रवैया न केवल पत्रकारिता के अधिकारों का अपमान है, बल्कि सूचना के अधिकार की भावना के भी खिलाफ है। विभागीय पारदर्शिता का अर्थ सिर्फ “बाइट देना” नहीं, बल्कि तथ्यों और दस्तावेजों को सार्वजनिक करना भी है।
अवैध कटाई और शिकार दोनों पर बढ़ा दबाव
बलौदाबाजार वन मंडल हाल के वर्षों में लगातार सुर्खियों में रहा है।
सोनाखान, अर्जुनी, देवपुर और बारनवापारा के क्षेत्रों में बीते तीन सालों में कई बार अवैध कटाई, शिकार और वन्यजीव मौत की घटनाएं सामने आई हैं।
आधिकारिक आंकड़े न मिलने के बावजूद स्थानीय सूत्र बताते हैं कि —
- पिछले दो वर्षों में करीब 30 से अधिक वन्यजीवों की मौत दर्ज हुई है, जिनमें से कई संदिग्ध परिस्थितियों में थीं।
- कई बार शिकारियों से तार-फंदा और इलेक्ट्रिक वायर बरामद हुए हैं, लेकिन कार्रवाई निचले स्तर तक सीमित रही।
वन विभाग का कहना है कि बीमार जानवरों का इलाज अभयारण्य स्थित अस्थायी रेस्क्यू सेंटर और सीसीएफ रायपुर के अधीन वाइल्डलाइफ ट्रीटमेंट यूनिट में किया जाता है। लेकिन कई बार घायल या बीमार जानवरों की सूचना मौके पर पहुंचने से पहले ही विलंब से मिलती है।
अधिकारियों की घबराहट – “मीडिया के सवालों का जवाब कैसे दें?”
विभाग के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, बीते कुछ महीनों में लगातार खबरें आने से अधिकारी दबाव में हैं। कई कर्मचारी अब मीडिया से बातचीत करने से बच रहे हैं।
एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा –“ऊपर से दबाव बढ़ गया है। अब हर खबर के बाद हमसे रिपोर्ट मांगी जाती है, लेकिन फील्ड में स्थिति वही है।”
माना जा रहा है कि बारनवापारा, कोठारी रेंज में भी अवैध गतिविधियों पर जांच की जरूरत है, लेकिन विभाग फिलहाल सोनाखान विवाद में ही उलझा है।
सवालों से घिरा वन विभाग, जवाबों से दूर अधिकारी
सोनाखान की अवैध कटाई का मामला अब विभागीय खामियों और जवाबदेही की परीक्षा बन गया है। DFO गणवीर धम्मशील का बयान, खंडन और फाइलों की देरी — सब मिलकर यह दिखाते हैं कि व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी है।
मीडिया की भूमिका सिर्फ सवाल उठाना नहीं, जवाब मांगना भी है।
लेकिन जब “जांच” को “खंडन” में बदल दिया जाए, तो यह केवल पेड़ों की नहीं, भरोसे की भी कटाई है।
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