राज्यपाल के कार्यक्रम में पत्रकारों से बदसलूकी, कवरेज छोड़ जताया विरोध

राज्यपाल के कार्यक्रम का किया बहिष्कार, सारंगढ़ में पत्रकारों का फूटा गुस्सा (Chhattisgarh Talk)
राज्यपाल के कार्यक्रम का किया बहिष्कार, सारंगढ़ में पत्रकारों का फूटा गुस्सा (Chhattisgarh Talk)

राज्यपाल रमेन डेका के सारंगढ़ दौरे में पत्रकारों के साथ अभद्र व्यवहार, प्रशासन की लापरवाही से नाराज़ पत्रकारों ने किया बहिष्कार, पुलिस अधिकारी की टिप्पणी से भड़का मामला।


कबीर दास मानिकपुरी | सारंगढ़: छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमेन डेका के सारंगढ़ आगमन के दौरान उस वक्त माहौल गरमा गया जब कवरेज के लिए पहुंचे पत्रकारों ने जिला प्रशासन की अव्यवस्था और असंवेदनशील रवैये के खिलाफ एकजुट होकर कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। यह घटना उस समय हुई जब पत्रकारों के लिए न तो कार्यक्रम स्थल पर बैठने की कोई व्यवस्था की गई थी और न ही उन्हें उचित कवरेज की अनुमति दी गई। उल्टा, ड्यूटी में तैनात एक पुलिस अधिकारी की अभद्र टिप्पणी ने आग में घी डालने का काम किया।

“हम तो सिर्फ भगाना जानते हैं” – पुलिस अधिकारी की टिप्पणी ने भड़काया मामला

पूरा घटनाक्रम उस समय शुरू हुआ जब कवरेज के लिए पहुंचे पत्रकार कलेक्टोरेट परिसर में खड़े थे। उसी दौरान एक बड़े पुलिस अधिकारी ने पत्रकारों से सवालिया लहजे में कहा, “यहां क्यों खड़े हो?” जब पत्रकारों ने उन्हें बताया कि वे मीडिया से हैं और कार्यक्रम कवरेज के लिए आए हैं, तो अधिकारी ने तंज कसते हुए कहा, “हम तो सिर्फ भगाना जानते हैं, बैठाने की व्यवस्था नहीं करते।” इस टिप्पणी ने पत्रकारों को भीतर तक झकझोर दिया।

“हम तो भगाना जानते हैं, बैठाने की व्यवस्था नहीं करते…”

पुलिस अधिकारी द्वारा पत्रकारों से कहे गए इस अपमानजनक वाक्य ने आग में घी का काम किया। पत्रकारों में रोष फैल गया। कैमरे बंद कर दिए गए, माइक उतार दिए गए, और फिर दर्जनों पत्रकार कार्यक्रम स्थल से बाहर निकल आए। वहीं, कलेक्ट्रेट परिसर गूंज उठा नारों से—पत्रकार साथियों का अपमान नही सहेंगे नही सहेंगे.. “प्रशासन होश में आओ”, “मीडिया का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान”।

“यह पहला मामला नहीं है…” – मीडिया को दबाने की कोशिश?

स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि प्रशासन द्वारा मीडिया के साथ ऐसा व्यवहार कोई नई बात नहीं है। प्रेस क्लब और श्रमजीवी पत्रकार संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी इस घटना की तीखी आलोचना की। पत्रकारों का कहना है कि बार-बार हो रहे इस प्रकार के दुर्व्यवहार से यह स्पष्ट हो गया है कि जिला प्रशासन प्रेस की स्वतंत्रता को गंभीरता से नहीं ले रहा।

श्रमजीवी पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष गोल्डी नायक ने कहा,
“यह प्रेस की गरिमा का अपमान है। हमें आमंत्रित किया गया, लेकिन हमारे लिए न कोई व्यवस्था की गई और न ही सम्मान। यदि प्रशासन मीडिया की आवाज को दबाना चाहता है, तो हम इससे पीछे हटने वाले नहीं हैं।”

देखिए पत्रकारों ने क्या कहा- क्लिक करे

प्रेस क्लब जिलाध्यक्ष दीपक ने कहा:
“मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। अगर हमें ही कार्यक्रमों से बाहर रखा जाएगा, या अपमानित किया जाएगा, तो कौन जनता तक सच्चाई पहुंचाएगा? प्रशासन की यह कार्यशैली बेहद चिंताजनक है।”

पत्रकारों की एकजुटता, विरोध बना संदेश

इस विरोध प्रदर्शन के दौरान पत्रकारों ने स्पष्ट कर दिया कि जब तक प्रशासन माफी नहीं मांगता और मीडिया के सम्मानजनक कवरेज के लिए उचित व्यवस्था नहीं करता, वे ऐसे सभी कार्यक्रमों का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने राज्यपाल से भी आग्रह किया है कि वे इस घटना का संज्ञान लें और मीडिया को अपमानित करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करें।

अब सवाल उठता है – क्या प्रशासन अपनी गलती मानेगा? क्या जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कोई कदम उठाया जाएगा? या फिर पत्रकारों की आवाज़ एक बार फिर अनसुनी रह जाएगी?

आखिर कब सुधरेगा सिस्टम?

यह सवाल अब सारंगढ़ के हर गली-चौराहे पर गूंज रहा है। राज्यपाल के कार्यक्रम जैसे गरिमामयी अवसर पर यदि पत्रकारों को जगह नहीं, सम्मान नहीं और व्यवस्था नहीं, तो आम कार्यक्रमों में उनके साथ कैसा व्यवहार होता होगा—यह सोचने वाली बात है।

कहानी के पीछे की सच्चाई यही है कि जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ असम्मान झेले, तो लोकतंत्र की नींव खुद हिलने लगती है। यह सिर्फ पत्रकारों का बहिष्कार नहीं था, बल्कि व्यवस्था को आइना दिखाने की एक कोशिश थी।

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