



कांग्रेस कार्यालय में हुई बैठक के दौरान मारपीट की खबरों से राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। घायल नेताओं के रायपुर भागने, वीडियो न आने और गुटबाजी की खबरों ने अंतर्कलह की पोल खोल दी है। जानिए पूरी रिपोर्ट।
चंदु वर्मा, बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह कोई आंदोलन या जनहित मुद्दा नहीं, बल्कि पार्टी के अंदर खदबदाती गुटबाजी और कथित मारपीट की घटनाएं हैं। बुधवार को जिला कांग्रेस कार्यालय में आयोजित एक बैठक के बाद शहर में अचानक यह चर्चा आग की तरह फैल गई कि बैठक के दौरान जमकर बवाल हुआ, गाली-गलौज के बाद नेताओं में हाथापाई तक हो गई और कुछ वरिष्ठ नेताओं को घायल अवस्था में रायपुर तक भागना पड़ा।
कांग्रेस कार्यालय में मारपीट: बैठक या अखाड़ा? कांग्रेस नेताओं की पिटाई की चर्चा गरम
स्थानीय सूत्रों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हवाले से खबर है कि न्याय यात्रा को लेकर बुलाई गई बैठक के दौरान अचानक माहौल बिगड़ गया। बहस इतनी तेज़ हुई कि कुछ कार्यकर्ता आपा खो बैठे और हाथापाई की नौबत आ गई। चर्चाओं के मुताबिक, मारपीट में कांग्रेस के एक पूर्व प्रत्याशी शैलेश नितिन त्रिवेदी को गंभीर चोटें आईं और उन्हें रायपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और न ही त्रिवेदी खुद सामने आए हैं।
कांग्रेस कार्यालय में मारपीट: नेताओं की चुप्पी और वीडियो का न आना बना संदेह का कारण
इस घटना को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि यदि कुछ हुआ ही नहीं तो कांग्रेस कार्यालय में हुई बैठक का वीडियो सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? आज के दौर में जहां हर छोटी-बड़ी बैठक की तस्वीरें तुरंत सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं, वहां इस अहम बैठक की कोई फुटेज सामने न आना संदेह को और गहरा करता है।
जिला अध्यक्ष ने किया इनकार, बोले – महज अफवाह
जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुमित्रा घृतलहरे ने इन खबरों को सिरे से नकारते हुए कहा कि “बैठक पूरी तरह शांतिपूर्ण रही, किसी प्रकार की कोई झड़प नहीं हुई। जो लोग अफवाह फैला रहे हैं, वे ही बता सकते हैं कि झगड़ा कहां हुआ।” उन्होंने विधायकों की अनुपस्थिति पर सफाई दी कि शादी-विवाह और कार्यक्रमों में व्यस्तता के कारण वे बैठक में शामिल नहीं हो पाए।
गुटबाजी और टिकट बंटवारे की नाराजगी ने डाला साया?
कहा जा रहा है कि यह विवाद अचानक नहीं हुआ, बल्कि लंबे समय से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में टिकट बंटवारे को लेकर नाराजगी थी। नगर पालिका और पंचायत चुनावों में नेताओं की मनमानी और गुटीय समीकरणों को लेकर कार्यकर्ताओं में असंतोष था। इस बैठक में बस चिंगारी मिली और गुस्सा फूट पड़ा।
21 अप्रैल को रायपुर में मुख्यमंत्री कार्यालय का घेराव, लेकिन तैयारी में दरार साफ
बैठक का उद्देश्य आगामी 21 अप्रैल को रायपुर में होने वाले मुख्यमंत्री निवास घेराव की रणनीति तय करना था। लेकिन जब खुद कांग्रेस कार्यकर्ता ही अपने नेताओं से नाराज़ दिखें, तो आंदोलन की सफलता पर सवाल उठना लाजिमी है।
डाकघर घेराव में भी दिखी असमंजस की स्थिति
बैठक के बाद कांग्रेस ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ जारी ईडी-सीबीआई कार्रवाई के विरोध में डाकघर का घेराव किया, लेकिन वहां भी पार्टी की एकजुटता नदारद रही। स्थानीय पुलिस को स्थिति संभालनी पड़ी।
नेताओं की चुप्पी और प्रदेश नेतृत्व की उदासीनता – आखिर क्यों?
सबसे बड़ी बात यह कि इस पूरे प्रकरण पर अब तक प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है। अगर मारपीट जैसी गंभीर घटनाएं सच हैं, तो यह संगठनात्मक अनुशासन की भारी चूक है। और यदि ये केवल अफवाहें हैं, तो कांग्रेस को इसे सिरे से खारिज करने के लिए तथ्य और प्रमाण सामने लाने होंगे।
क्या कांग्रेस खुद के ही भीतर से कमजोर हो रही है?
बलौदाबाजार में जो कुछ भी हुआ, उसने यह जरूर साबित कर दिया कि कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच भरोसे की डोर कमजोर पड़ रही है। अगर समय रहते संगठन के भीतर की इस चिंगारी को नहीं बुझाया गया, तो यह पार्टी के लिए विधानसभा और स्थानीय चुनावों में भारी नुकसान का कारण बन सकती है।
डिस्क्लेमर: यह रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारियों, स्थानीय सूत्रों, चर्चाओं और मीडिया संवादों पर आधारित है। इसमें वर्णित घटनाएं, नाम और टिप्पणियां तथ्यों की पुष्टि के आधार पर प्रस्तुत की गई हैं। किसी व्यक्ति, संस्था या संगठन की मानहानि करना या उनकी छवि को नुकसान पहुंचाना इस रिपोर्ट का उद्देश्य नहीं है। यदि किसी पक्ष को इस खबर से आपत्ति है, तो वे संबंधित दस्तावेजों के साथ अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसे हम तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत करेंगे। इस समाचार की सभी जानकारी सार्वजनिक हित और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत प्रकाशित की गई है।
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