लखना-सांकरा में नाकोड़ा स्टील प्लांट के खिलाफ ग्रामीणों का संगठित विरोध, जनसुनवाई के बहिष्कार का ऐलान, पर्यावरण और आस्था को लेकर गहरा आक्रोश।
रायपुर: धर्म, पर्यावरण और जीविका के बीच खड़ा एक बड़ा सवाल… क्या विकास का मतलब जनभावनाओं को कुचलना है? लखना और सांकरा के गांवों में आज फिर वही ज्वाला उठी है, जो पिछले हफ्ते मां बेरीवली प्लांट के खिलाफ भड़की थी। इस बार विरोध का केन्द्र है – मेसर्स नाकोड़ा स्टील प्लांट जिसकी जनसुनवाई 27 जून को होनी है। लेकिन गांवों ने साफ कर दिया है –
“हम नहीं जाएंगे… लेकिन विरोध ज़रूर गूंजेगा!”
स्टील प्लांट नहीं, जीवन का सवाल है…! कुछ यही संदेश है लखना-सांकरा क्षेत्र के हजारों ग्रामीणों का, जिन्होंने 27 जून को प्रस्तावित नाकोड़ा स्टील प्लांट की जनसुनवाई को बहिष्कृत करने का फैसला ले लिया है। यह केवल विरोध नहीं, बल्कि एक चेतावनी है — “हमारी सहमति के बिना विकास नहीं होगा”।
नाकोड़ा स्टील प्लांट: गांव फिर उबाल पर, जनसुनवाई से पहले ही बिगड़े हालात
धार्मिक, जैविक और पारिस्थितिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले लखना-सांकरा क्षेत्र में एक बार फिर नाकोड़ा स्टील प्लांट उद्योग स्थापना को लेकर माहौल गरमा गया है। इससे पहले मां बेरीवली स्टील प्लांट के खिलाफ जबर्दस्त विरोध देख चुका यह इलाका अब नाकोड़ा स्टील प्रोजेक्ट को लेकर फिर आंदोलित हो उठा है।
ग्रामीणों ने स्पष्ट कर दिया है — “जनसुनवाई में हम शामिल नहीं होंगे, लेकिन हमारी आवाज़ वहां गूंजेगी जरूर!”
नाकोड़ा स्टील प्लांट: सोमनाथ धाम के आसपास धुआं नहीं चाहिए!
लखना-सांकरा क्षेत्र केवल गांव नहीं — धार्मिक-पर्यावरणीय धरोहर है।
🔹 सोमनाथ धाम, बाबा भीमसेन मंदिर जैसे स्थल
🔹 सिंचाई की नदियां
🔹 वन जीवन और खेती
ग्रामीणों का कहना है —
“एक स्टील प्लांट से ये सब ध्वस्त हो जाएगा। हम चुप नहीं बैठेंगे।”
नाकोड़ा स्टील प्लांट: संगठित विरोध की तैयारी, गांव की बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय
सोमवार, मंगलवार और बुधबार को ग्राम लखना में आयोजित एक आंतरिक बैठक में सैकड़ों ग्रामीणों ने भाग लिया। सरपंच, सामाजिक प्रतिनिधि, महिला मंडल, युवा समूह और किसान नेताओं ने एक सुर में कहा —
“नाकोड़ा स्टील प्लांट, यह केवल एक प्लांट नहीं, हमारे खेत, जंगल, जल और आस्था पर हमला है।”
बैठक में तय किया गया कि 27 जून की नाकोड़ा स्टील प्लांट जनसुनवाई का पूर्ण बहिष्कार किया जाएगा और प्लांट विरोधी आंदोलन को और अधिक संगठित किया जाएगा।
प्रशासन पर अनदेखी का आरोप: हमने चेताया था, फिर भी चुप हैं अधिकारी
ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने पहले ही जिला प्रशासन को चेतावनी दी थी कि इस क्षेत्र में नया भारी उद्योग स्वीकार्य नहीं है। फिर भी न जनप्रतिनिधि आए, न अधिकारियों ने कोई संवाद किया।
एक ग्रामीण नेता ने तीखे लहजे में कहा:
“अगर जनसुनवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है, तो यह लोकतंत्र का मज़ाक है।“
इतिहास फिर दोहराने को तैयार: मां बेरीवली प्लांट में भी हुआ था भारी विरोध
21 जून को हुए एक अन्य स्टील प्लांट की जनसुनवाई में हजारों ग्रामीण, विशेषकर महिलाएं और बुजुर्ग, विरोध में सड़क पर उतर आए थे। आयोजन स्थल पर बैनर, पोस्टर, नारों और ग्राम्य एकता की ऐसी तस्वीर सामने आई कि कंपनी प्रतिनिधि आधी सुनवाई में ही लौट गए थे।
अब नाकोड़ा की बारी है — और लोग कह रहे हैं, “यहां भी वैसा ही होगा।”
सोमनाथ धाम की छाया में नहीं चाहिए स्टील प्लांट
ग्रामीणों का विरोध सिर्फ पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक आधार पर भी है। उनका कहना है कि यह क्षेत्र सोमनाथ धाम, बाबा भीमसेन मंदिर, और कई वन आस्थाओं का केंद्र है।
“स्टील प्लांट यहां लगेगा तो नाले सूखेंगे, खेत बंजर होंगे, और धार्मिक स्थलों की गरिमा भी खतरे में पड़ जाएगी।“
अब सवाल प्रशासन पर — किसके साथ खड़ा होगा?
27 जून को प्रस्तावित जनसुनवाई अब केवल कानूनी प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संवेदनशील अग्निपरीक्षा बन चुकी है। प्रशासन क्या करेगा?
✅ जनमत के साथ?
❌ या फिर कॉर्पोरेट परियोजनाओं के पक्ष में?
अब निगाहें 27 जून पर — प्रशासन किसका साथ देगा?
अब सभी की निगाहें उस तारीख पर टिक गई हैं जब यह जनसुनवाई प्रस्तावित है। क्या प्रशासन जनता के पक्ष में खड़ा होगा? या एक बार फिर ग्रामीणों को अपनी आवाज़ बुलंद करनी पड़ेगी?
संदेश साफ है:
“यह सिर्फ विरोध नहीं… प्रकृति, संस्कृति और जीवनशैली की रक्षा का जनसंकल्प है।”
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