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Guru Ghasidas Jayanti : धर्म गुरु मुक्ति दास जी के सानिध्य जनप्रतिनिधियों व समाज प्रमुखों के उपस्थिति में निकलेगा यात्रा; 18 दिसम्बर को ही सादगी के साथ जयंती मनाने अपील

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Guru Ghasidas Jayanti : धर्म गुरु मुक्ति दास जी के सानिध्य जनप्रतिनिधियों व समाज प्रमुखों के उपस्थिति में निकलेगा यात्रा; 18 दिसम्बर को ही सादगी के साथ जयंती मनाने अपील

Chhattisgarh Talk / राघवेंद्र सिंह / बलौदाबाजार : बलौदाबाजार जिले के पलारी ब्लाक मुख्यालय में प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी गुरु घासीदास जयंती के पूर्व संध्या पर पलारी नगर में सतनामी समाज द्वारा भब्य सतनाम शोभायात्रा निकाली जाएगी। गुरु दर्शन एवं आशीर्वाद प्रदान करने धर्म गुरु मुक्ति दास जी खपरीपुरी धाम के सानिध्य में शोभायात्रा निकाली जाएगी।जिसमें अंचल के जनप्रतिनिधि गण सभी समाज के प्रमुख गण उपस्थित रहेंगे। शोभायात्रा को सफल बनाने के समाज प्रमुखों का सतनाम भवन पलारी में आवश्यक बैठक रखा गया जिसमें आयोजन समिति का गठन किया गया है जिसमें महेश ढीढी को संयोजक एवं वावेल राबर्ट एवं जे एल जोशी को सहसंयोजक बनाया गया है.

छत्तीसगढ़ राज्य के बलौदाबाजार जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के कोख से जन्मे थे गुरू घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। गुरूजी महान बै‌द्य एवं वैज्ञानिकऔर तर्कवादी विचारक थे। गुरुजी जन्म से न मानकर कर्म को महान मानते थे।भंडारपुरी में जहां अपने धार्मिक स्थल को संत समाज को प्रमाणित सत्य के शक्ति के साथ दिया था, वहाँ गुरूजी के वंशज जो जन्म से गुरु हैं आज भी निवासरत है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता, शोषण तथा जातिवाद सामंतीयो काअन्नयाय अत्याचार को समाप्त करके मानव-मानव एक समान का संदेश दिया। इनसे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित थे।

ज्ञान की प्राप्ति गुरु घासीदास जी का जन्म- 18 दिसंबर 1756 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में गिरौद नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम मंहगू दास तथा माता का नाम अमरौतिन था और उनकी धर्मपत्नी का सफुरा था। गुरू घासीदास को ज्ञान की प्राप्ति छतीशगढ के रायगढ़ जिला के सारंगढ़ तहसील में बिलासपुर रोड (वर्तमान में) मंदिर स्थित एक पेड़ के नीचे तपस्या करते वक्त प्राप्त हुआ माना जाता है। जहां आज गुरु घासीदास पुष्प वाटिका की स्थापना की गई है।

गहरा सम्बन्ध गुरू घासीदास बाबाजी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नकारा। उन्होंने ब्राह्मणों के प्रभुत्व को नकारा और कई वर्णों में बांटने वाली जाति व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से समान हैसियत रखता है। गुरू घासीदास ने मूर्तियों की पूजा को वर्जित किया। वे मानते थे कि उच्च वर्ण के लोगों और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।

प्रेम करने की सीख गुरू घासीदास पशुओं से भी प्रेम करने की सीख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यवहार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। गुरू घासीदास के संदेशों का समाज के पिछड़े समुदाय में गहरा असर पड़ा। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार उस वक्त लगभग 4 लाख लोग सतनाम पंथ से जुड़ चुके थे और गुरू घासीदास के अनुयायी थे। छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर नारायण सिंह पर भी गुरू घासीदास के सिध्दांतों का गहरा प्रभाव था।

सात्विक जीवन गुरू घासीदास के संदेशों और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व नृत्यों के जरिए भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विधा भी मानी जाती है। गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने न सिर्फ सत्य की आराधना की, बल्कि समाज में नई जागृति पैदा की और अपनी तपस्या से प्राप्त ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता की सेवा के कार्य में किया।

बाबा के अनुयायी इसी प्रभाव के चलते लाखों लोग बाबा के अनुयायी हो गए। फिर इसी तरह छत्तीसगढ़ में “सतनाम पंथ” की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग उन्हें अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के “सप्त सिद्धांत” के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास को ही माना जाता है।

चमत्कारिक कार्य बाबा ने तपस्या से अर्जित शक्ति के द्वारा कई चमत्कारिक कार्य कर दिखाए। बाबा गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को प्रेम और मानवता का संदेश दिया। संत गुरु घासीदास की शिक्षा आज भी प्रासंगिक है। पूरे छत्तीसगढ़ राज्य में गुरु घासीदास की जयंती 18 दिसंबर से एक माह तक बड़े उत्सव के रूप में पूरे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है।

प्रेरणा बाबा गुरु घासीदास की जयंती से हमें पूजा करने की प्रेरणा मिलती है और पूजा से सद्विचार तथा एकाग्रता बढ़ती है। इससे समाज में सद्कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। वे सत्य की तलाश के लिए गिरौदपुरी के जंगल में छाता पहाड़ पर समाधि लगाए इस बीच गुरूघासीदास जी ने गिरौदपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लम्बी तपस्या भी की।

संचालन समिति में ललित घृतलहरे,मोहन बंजारे,सरजू प्रसाद घृतलहरे,महेश बारले, नीलकमल आजाद,हरिश गेन्ड्रे जसनारायण गायकवाड़, कमल नारायण कुर्रे,गुलशन गायकवाड़ विक्रम राय, बसंत जांगड़े, एम मनहर, कृष्णा जांगड़े,रवि बंजारे,खेलावन घृतलहरे, अनिल आडिल, नेमूदास सोनवानी विश्वनाथ मांडले, नेमसिंह बांधे चरणदास तेहरवंश ,मोहर चतुर्वेदी , परमेश्वर गेन्ड्रे को जिम्मेदारी दी गई है।।आयोजन को सफल बनाने तन मन धन से सहयोग करने तथा अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनाने अपील किया गया है। समाज प्रमुखों द्वारा पूरे क्षेत्र में गुरु घासीदास जयंती पर्व को सादगी के साथ 18 दिसम्बर को ही आयोजित करने की अपील किया गया है।।

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