गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी (GGV) के छात्रों ने अर्जुनी के वनों में वन प्रबंधन, जैव विविधता, ANR तकनीक और समुदाय सहभागिता का गहरा अनुभव लिया….
बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में इन दिनों केवल पक्षियों की चहचहाहट नहीं, बल्कि युवाओं की कक्षा भी चल रही है। Floral biodiversity, nursery techniques & ecosystem study पर आधारित यह कार्यक्रम जंगल को क्लासरूम और पेड़ों को शिक्षक बना रहा है। बलौदाबाजार वनमण्डल अधिकारी गणवीर धम्मशील के निर्देशन में अर्जुनी परिक्षेत्र में इन दिनों जंगल कुछ अलग ही रंग में नजर आ रहा है। पेड़ों की छांव में सिर्फ पक्षियों की आवाज़ नहीं, बल्कि युवाओं के सवाल, नोटबुक की सरसराहट और वन अधिकारियों की समझाइशें गूंज रही हैं। मौका है गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय बिलासपुर के बीएससी (वर्ष 4 सेमेस्टर) छात्रों के लिए चल रहे सात दिवसीय “वन प्रबंधन इंटर्नशिप कार्यक्रम” का, जिसे शैक्षणिक भ्रमण की अनुमति बारनवापारा अभ्यारण्य के वैकल्पिक क्षेत्र अर्जुनी और देवपुर में प्रदान की गई है।
गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी: क्या-क्या सीखा छात्रों ने?
पहले दिन: वन प्रबंधन का परिचय
छात्रों ने वन परिक्षेत्र अधिकारी अर्जुनी और प्रशिक्षु वन अधिकारियों के साथ निकटवर्ती वन क्षेत्रों का भ्रमण किया। उन्हें वनों में पाई जाने वाली विभिन्न पेड़-पौधों की प्रजातियों, औषधीय वनस्पतियों और स्थानीय जैव विविधता के विषय में विस्तार से जानकारी दी गई। उन्होंने वृक्ष प्रजातियां, औषधीय वनस्पति, जैव विविधता और स्थानीय वन्यजीवों का अवलोकन कर वन प्रबंधन की बुनियादी समझ हासिल की।
📝 कार्य: वनस्पति और वन्यजीवों की सूची बनाना।
पुस्तकों में हम सिर्फ नाम पढ़ते थे – ‘अर्जुन’, ‘चिरौंजी’, ‘कुसुम’। यहां हमनें उन्हें छूकर, पहचानकर जाना। जंगल की हवा में ज्ञान है, बस उसे महसूस करने की ज़रूरत है। –स्नेहा रानी, गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी
दूसरे दिन: कार्य योजना और ANR तकनीक
छात्रों ने Assisted Natural Regeneration (ANR) और लकड़ी कटाई के बाद की प्रबंधन तकनीकों को समझा। वन संरक्षण के लिए आवश्यक रणनीतियों और योजना निर्माण की बारीकियों से अवगत कराया गया।
👉 उन्होंने लकड़ी कटाई के बाद क्षेत्र में पुनः हरियाली लाने की कार्ययोजना को समझा।
📝 कार्य: क्षेत्रीय वन प्रबंधन की चुनौतियों की पहचान।
जब मैंने हाथों से पौधा लगाया, तो ऐसा लगा जैसे मैंने जीवन को छू लिया हो। वन अधिकारियों से मिली सीख ने मेरे भीतर एक जिम्मेदार नागरिक को जगा दिया -पीयूष राज, गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी
तीसरे दिन: आवास पुनर्स्थापन पर व्यावहारिक अध्ययन
छात्रों ने आक्रामक प्रजातियों को हटाने और स्थानीय प्रजातियों के पुनर्जनन के महत्व को व्यावहारिक तौर पर सीखा। चरागाह विकास की प्रक्रियाएं और उनके जैविक प्रभावों को भी जाना।
📝 कार्य: आवास पुनर्स्थापन पर क्षेत्रीय रिपोर्ट तैयार करना।
मुझे वन्यजीव-मानव संघर्ष पर काम करना सबसे रोचक लगा। गांववालों से बात कर समझ आया कि जंगल और इंसान साथ रह सकते हैं, अगर संवाद हो। -खुशी निर्मलकर, गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी
चौथे दिन: मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रबंधन
पलारी क्षेत्र के संघर्ष प्रभावित गांवों का भ्रमण कर छात्रों ने स्थानीय निवासियों से संवाद किया। इनसे प्राप्त जानकारियों के आधार पर मानव-वन्यजीव संघर्ष और उनके संभावित समाधान पर केस स्टडी तैयार की गई।
📝 कार्य: संघर्ष स्थलों की पहचान और समाधान प्रस्तावित केस स्टडी तैयार करना।
आक्रामक प्रजातियों को हटाने और देशी पौधों को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया देखी। यह देखना भावुक कर गया कि कैसे जंगल खुद को फिर से जीवित करता है। -अस्मिता हलदर, गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी
पांचवें दिन: वन आधारित आजीविका और समुदाय सहभागिता
छात्रों ने स्थानीय समुदायों से बातचीत कर वनों पर उनकी निर्भरता, वन संसाधनों से उनकी आजीविका और संरक्षण में उनकी भागीदारी को समझा।
📝 कार्य: वन आधारित आजीविका पर रिपोर्ट।
यह सिर्फ इंटर्नशिप नहीं थी, यह आत्मा से जुड़ने का मौका था। हर पेड़, हर पौधे ने कुछ सिखाया। मैंने जंगल को नहीं, खुद को समझा। -पलक गोयारे, गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी
छठवां दिन: वार्षिक योजना निर्माण
Participatory Rural Appraisal (PRA) गतिविधियों के माध्यम से छात्रों ने ग्रामीणों की सहभागिता से वार्षिक वन प्रबंधन योजना तैयार की। यह अभ्यास छात्रों के लिए क्षेत्रीय योजना निर्माण का व्यवहारिक अनुभव रहा।
मैंने पहली बार PRA (Participatory Rural Appraisal) किया। ग्रामीणों ने हमारी बातों को गंभीरता से लिया, यह एहसास बहुत सशक्त करने वाला था। -प्रांजल साहू, गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी
सातवां दिन: रिपोर्ट प्रस्तुति और अनुभव साझा करना
अंतिम दिन छात्रों ने पूरे सप्ताह के अनुभवों और अध्ययन निष्कर्षों को रिपोर्ट और प्रेजेंटेशन के रूप में साझा किया। उन्होंने वनों की संवेदनशीलता, जैव विविधता के महत्व और समुदाय सहभागिता के व्यावहारिक पहलुओं पर गहन चिंतन प्रस्तुत किया।
छात्रों ने अपनी संपूर्ण कार्यप्रणाली, क्षेत्रीय अध्ययन, अवलोकन और अनुशंसाओं को प्रेजेंटेशन के माध्यम से साझा किया।
गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी: प्रतिभागी छात्र-छात्राएं (बलौदाबाजार के अर्जुनी परिक्षेत्र में):
गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राओं के लिए यह कार्यक्रम “Floral Biodiversity, Nursery Techniques & Ecosystem Study” विषय पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य छात्रों को स्थलीय जैव विविधता, वन प्रबंधन तकनीक, मानव-वन्यजीव संघर्ष, तथा सामुदायिक सहभागिता जैसे क्षेत्रों में व्यवहारिक अनुभव देना है।
- स्नेहा रानी
- पीयूषराज
- खुशी निर्मलकर
- अस्मिता हलदर
- प्रांजल साहू
- पलक गोयारे
छात्रा स्नेहा रानी ने कहा, हमने कक्षा में जो पढ़ा था, यहां आकर उसका असली मतलब समझ आया। पलक गोयारे बोलीं, “वन्यजीव संघर्ष से लेकर सामुदायिक सहभागिता तक हर विषय को जमीन से सीखा।
18 एवं 19 जून को आयोजित इस शैक्षणिक यात्रा में वन परिक्षेत्र अधिकारी अर्जुनी, प्रशिक्षु वन क्षेत्रपाल एवं अर्जुनी रेंज के अनुभवी वन स्टाफ ने छात्र-छात्राओं को वृक्ष प्रजातियों की पहचान, औषधीय पौधों का महत्व, एवं वन प्रबंधन की तकनीकी प्रक्रियाएं जैसे कि:
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सर्वे-सिमांकन (Boundary demarcation),
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मार्किंग (Tree marking),
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कूप कटाई (Coup Cutting),
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एवं ANR (Assisted Natural Regeneration)
जैसे कार्यों का मौके पर अभ्यास व विवरण दिया।
छात्रों का कहना था कि यह इंटर्नशिप केवल डाटा संग्रह या रिपोर्टिंग भर नहीं था, बल्कि एक ऐसी यात्रा थी, जहां उन्होंने ‘जंगल को केवल पढ़ा नहीं, बल्कि जिया’। ग्रामीणों के अनुभव, वन्यजीवों की उपस्थिति, और संरक्षण के लिए चल रहे प्रयासों ने उनकी सोच को जमीनी और व्यावहारिक बनाया।
अधिकारियों की राय:
वन परिक्षेत्र अधिकारी अर्जुनी ने बताया, “यह कार्यक्रम छात्रों को सिर्फ वानिकी की तकनीकी जानकारी नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर कार्य करने की दृष्टि देता है। आने वाले समय में ये विद्यार्थी हमारे पर्यावरण प्रहरी बन सकते हैं।”
वनमण्डलाधिकारी गणवीर धम्मशील ने कहा, “ऐसी पहल विद्यार्थियों में पर्यावरणीय चेतना और संरक्षण की जिम्मेदारी को विकसित करती है। हमने पूरी कोशिश की कि इस इंटर्नशिप के दौरान हर छात्र प्रकृति से जुड़ाव महसूस करे।”
वनों की गहराइयों से निकले पाठ, सिर्फ किताबी नहीं थे।
इस इंटर्नशिप के दौरान छात्र-छात्राओं ने वन्यजीव संरक्षण, समुदाय सहभागिता, जैव विविधता, और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को जमीनी अनुभव के साथ सीखा। यह पहल छात्रों को न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टिकोण देती है, बल्कि संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का भाव भी पैदा करती है।
वन परिक्षेत्र अधिकारी अर्जुनी का कहना है –
“ऐसे कार्यक्रम भविष्य के वानिकी विशेषज्ञों को जमीनी अनुभव से जोड़ते हैं। यह सिर्फ ज्ञान नहीं, प्रकृति से संवाद है।”
वनमंडलाधिकारी गणवीर धम्मशील के दिशा-निर्देशन में यह कार्यक्रम विद्यार्थियों के लिए एक यादगार और प्रेरणादायक शैक्षणिक यात्रा बन गया।
इस इंटर्नशिप ने विद्यार्थियों को न सिर्फ वन्यजीवों, पौधों और नीतियों से जोड़ा, बल्कि ग्रामीणों के संघर्ष, उनकी जिजीविषा और जंगल के साथ उनके रिश्ते को भी गहराई से समझाया। यह अनुभव उनके लिए किसी किताब या क्लासरूम से कहीं बड़ा था।
यह सिर्फ एक शैक्षणिक भ्रमण नहीं था, यह प्रकृति से बना आत्मिक रिश्ता था। 🌳
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