बलौदाबाजार में धान कटाई के बाद खेतों में पराली जलाने का सिलसिला तेज। कलेक्टर के निर्देशों के बावजूद किसान बेखौफ, कृषि विभाग नाकाम। पर्यावरण पर गंभीर असर।
बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिले में खरीफ धान की कटाई लगभग पूरी हो चुकी है। कटाई के साथ ही कई गांवों में खेत जंगल की आग की तरह दहक रहे हैं। खेत दर खेत पराली जलाने का सिलसिला इतनी तेजी से बढ़ा है कि जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर बाहर निकलते ही हर दिशा में धुआं ही धुआं नजर आता है। कलेक्टर द्वारा पराली जलाने पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं, लेकिन हालात बताते हैं कि ये निर्देश केवल दफ्तरों की फाइलों में ही घूम रहे हैं। मैदानी अधिकारियों की लापरवाही साफ दिख रही है और कृषि विभाग किसानों को जागरूक करने की जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह नाकाम है।
धान कटाई पराली जलाना: गांव दर गांव आग की लपटें, जिम्मेदार गायब
बलौदाबाजार जिले के जिन इलाकों में अभी हाल तक मशीनों की आवाज़ और फसल कटाई का शोर सुनाई देता था, वहां अब रात होते ही आग की तेज लपटें दिखाई देती हैं। किसानों के लिए यह सालों पुरानी आदत है कि धान का ठूंठ, नरई और कचरा जलाकर अगली फसल की तैयारी कर ली जाए। लेकिन आज की स्थिति यह है कि पराली जलाने का दुष्परिणाम गांवों से शहरों तक फैल रहा है। सड़क किनारे से लेकर मुख्य मार्गों तक धुआं फैला रहने से दृश्यता कम हो रही है और लगातार सांस लेने में जलन महसूस हो रही है।
हैरानी की बात यह है कि उत्तर भारत में पराली जलाने पर कोर्ट तक को दखल देना पड़ा था, वहीं यहां कलेक्टर के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद प्रशासन और कृषि विभाग पूरी तरह से निष्क्रिय नजर आ रहा है। गांवों में ना तो कोई निगरानी टीम पहुंच रही है और ना ही किसानों को बताया जा रहा है कि इसके क्या नुकसान हैं। नतीजा यह कि किसान बेधड़क आग लगा रहे हैं और पूरा इलाका जहरीले धुएं में डूबा हुआ है।
धान कटाई पराली जलाना; रात में खेतों का निरीक्षण—हर तरफ धुआं, हर तरफ आग
सोमवार रात पलारी ब्लॉक के कोदवा, गिधपुरी और समोदा मार्ग का अवलोकन किया गया। रात करीब आठ बजे इस पूरे क्षेत्र में कई खेतों में आग धधकती हुई दिखाई दी। तेज हवा के साथ उठती लपटें दूर तक चमक रही थीं और उनके साथ उठने वाला धुआं पूरे वातावरण को ढक रहा था। यह धुआं इतना घना था कि सड़क पर भी हल्की धुंध छाई हुई दिख रही थी।
ग्रामीण बताते हैं कि कटाई होते ही किसान जल्दी से खेत साफ कर लेना चाहते हैं। आग लगाने से खेत कुछ ही घंटों में साफ दिखने लगता है। लेकिन वे यह नहीं समझते कि इसका नुकसान फसल से लेकर मिट्टी तक, और हवा से लेकर उनकी अपनी सेहत तक पहुंच रहा है।
पराली का धुआं पर्यावरण ही नहीं, मिट्टी को भी खत्म कर रहा है
विशेषज्ञों के अनुसार पराली जलाने से हवा में जहरीली गैसें फैलती हैं। सो2, एनओ2 जैसी गैसें वायुमंडल में बढ़ जाती हैं। छोटे बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों के लिए यह हवा बेहद खतरनाक है। पराली जलाने से जमीन का तापमान बढ़ जाता है और खेत की मिट्टी में मौजूद असंख्य लाभकारी जीव पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं।
किसान का सबसे बड़ा साथी माना जाने वाला केंचुआ आग की गर्मी में मर जाता है। नाइट्रोजन को जमीन तक पहुंचाने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया भी खत्म हो जाते हैं। मिट्टी की उर्वरक क्षमता तेजी से घटती है। जो किसान आज समय बचाने के लिए पराली जला रहे हैं, वही कुछ वर्षों बाद कम उत्पादन की शिकायत करते नजर आते हैं।
धान कटाई पराली जलाना; ईकोसिस्टम पर सीधा वार
पराली जलाना केवल प्रदूषण या मिट्टी का नुकसान नहीं है, यह पूरे ईकोसिस्टम के लिए खतरा है। प्राकृतिक वातावरण में आगजनी से छोटे जीव-जंतु, कीड़े और पक्षियों के अंडे तक नष्ट हो जाते हैं। जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी इसी तरह शुरू हो जाती हैं। पर्यावरण विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि आग लगाने से घास नियंत्रण में नहीं रहता, बल्कि बारिश के बाद वही घास पहले से ज्यादा वेग से उग आता है। इसलिए यह तरीका न केवल गलत है बल्कि बेअसर भी है।
विकल्प मौजूद हैं, लेकिन कृषि विभाग सो रहा है
किसानों के पास पराली नष्ट करने के कई विकल्प मौजूद हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने ऐसी दवाएं और माइक्रोबियल कैप्सूल तैयार किए हैं, जिनसे पराली जमीन में ही गलकर खाद में बदल जाती है। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और खेत साफ भी रहता है। वेस्ट डी-कंपोजर का वितरण भी कई बार किया गया है, जिसका छिड़काव बेहद कम लागत में किया जा सकता है।
लेकिन कृषि विभाग इन विकल्पों को किसानों तक पहुंचाने में सफल नहीं रहा। विभाग कुछ दिनों तक प्रचार करता है, फिर सब कुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है। ना कोई गांव स्तर पर बैठक, ना प्रदर्शन, ना गांव-गांव दौरा। नतीजा यह कि किसान पुराने तरीके पर अड़े रहते हैं और पराली जलाने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।
कलेक्टर के निर्देश क्यों नहीं लागू हो रहे?
कलेक्टर ने काटी के बाद होने वाली आगजनी पर रोक लगाने के लिए सभी तहसीलदार, एसडीएम, कृषि विभाग और पटवारियों को निर्देशित किया था। लेकिन इसका पालन कहीं भी जमीन पर नजर नहीं आता। न तो निगरानी की जा रही है और न ही किसानों को चेतावनी नोटिस जारी हो रहे हैं। सरकार से लेकर प्रशासन तक, हर स्तर पर गंभीरता की कमी साफ दिख रही है।
सूत्र बताते हैं कि विभागीय अधिकारी अक्सर यह कहकर बच निकलते हैं कि “किसान नहीं मानते”। जबकि सच यह है कि जिन्हें रोकने का अधिकार प्रशासन के पास है, वही लोग मौके पर पहुंचने की जहमत नहीं उठाते।
पराली जलाना कानूनन अपराध, पर जागरूकता शून्य
पराली जलाना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है। इसके लिए जुर्माना लगाने तक की व्यवस्था है। लेकिन जिले में किसी पर कार्रवाई नहीं हो रही। इसके विपरीत, गांवों में पराली जलाने का सिलसिला खुलेआम चल रहा है।
अगर प्रशासन इसे गंभीरता से ले, गांवों में पटवारी और कृषि विस्तार अधिकारी सक्रिय हों, तो पराली जलाना काफी हद तक रोका जा सकता है।
क्या होना चाहिए—समाधान मौजूद है
- गांव स्तर पर टीम बनाकर खेतों का निरीक्षण
- वेस्ट डी-कंपोजर का मुफ्त वितरण और प्रशिक्षण
- किसानों को पराली जलाने के नुकसान की जानकारी
- पहली बार चेतावनी, बार-बार आग लगाने पर जुर्माना
- ग्राम पंचायतों को जिम्मेदारी सौंपकर रिपोर्ट तय
अगर यह व्यवस्था लागू हो जाए तो पराली जलाना बहुत कम हो सकता है।
पर्यावरण को बचाना हम सबकी जिम्मेदारी
यह समस्या केवल किसानों की नहीं, पूरे समाज की है। पराली जलाने से हवा जहरीली होती है और यह वही हवा है जिसे बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और हम सभी सांस के साथ भीतर ले रहे हैं। पर्यावरण को बचाने की शुरुआत खेतों से ही होगी और इसके लिए प्रशासन व कृषि विभाग को तुरंत गंभीरता दिखानी होगी।
रिपोर्ट: चंद्रकांत वर्मा, संपादक – ChhattisgarhTalk.com
📍बलौदाबाजार से केशव साहू की ग्राउंड रिपोर्ट
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