विरोध की आंधी में डूबी बालाजी स्पंज आयरन फैक्ट्री की जनसुनवाई: “फैक्ट्री नहीं लगने देंगे” की गूंज से थर्राया अलदा गांव

"फैक्ट्री नहीं लगने देंगे" –बालाजी स्पंज आयरन फैक्ट्री जनसुनवाई में उमड़ा ग्रामीणों का सैलाब, हवा-पानी और जमीन बचाने की लड़ाई में एकजुटता (Chhattisgarh Talk)
"फैक्ट्री नहीं लगने देंगे" –बालाजी स्पंज आयरन फैक्ट्री जनसुनवाई में उमड़ा ग्रामीणों का सैलाब, हवा-पानी और जमीन बचाने की लड़ाई में एकजुटता (Chhattisgarh Talk)

बालाजी स्पंज आयरन फैक्ट्री के जनसुनवाई में उमड़ा ग्रामीणों का सैलाब, हवा-पानी और जमीन बचाने की लड़ाई में एकजुटता। “हम गांव बचाएंगे, फैक्ट्री नहीं आने देंगे” –महिलाओं का ऐलान – “जान दे देंगे, लेकिन फैक्ट्री नहीं लगने देंगे”


मिथलेश वर्मा, रायपुर: छत्तीसगढ़ के अलदा गांव में एक ऐसी जनसुनवाई हुई, जो शासन-प्रशासन के लिए चेतावनी बन गई। मौका था बालाजी स्पंज आयरन फैक्ट्री (मेसर्स बालाजी स्पंज एंड गवर प्राइवेट लिमिटेड) की स्थापना को लेकर पर्यावरणीय जनसुनवाई का, लेकिन नजारा ऐसा था मानो पूरा गांव और आसपास के इलाके सड़कों पर उतर आए हों – नारेबाजी, विरोध, आक्रोश और एक स्वर में उठा संकल्प: “फैक्ट्री नहीं लगने देंगे।”

3-4 हजार ग्रामीणों की हुंकार: “हमारे खेत बचाओ, हवा-पानी बचाओ”

अलदा, तुलसी, सरफोगां, बोरझीटी, भटभेरा और अन्य गांवों से आए 3 से 4 हजार महिला, पुरुष, बुजुर्ग, युवा और बच्चे – सभी ने मेसर्स बालाजी स्पंज एंड गवर प्राइवेट लिमिटेड जनसुनवाई को विरोध की सुनवाई में बदल दिया। महिलाओं ने दुपट्टे लहराए, बुजुर्गों ने बैनर उठाए, युवाओं ने नारे लगाए –
“स्पंज फैक्ट्री नहीं चाहिए”, “अधिकारी वापस जाओ”, “हमारा गांव बचाओ”।

जैसे ही मंच पर अधिकारी पहुंचे, नारों की गूंज ने उन्हें घेर लिया –
“फैक्ट्री नहीं लगने देंगे” “हमें जीने दो” “अधिकारी वापस जाओ”

जनसुनवाई बनी जनआक्रोश का मंच, अफसरों को बीच में छोड़ना पड़ा कार्यक्रम

बालाजी स्पंज आयरन (मेसर्स बालाजी स्पंज एंड गवर प्राइवेट लिमिटेड) के उद्योग द्वारा आयोजित यह जनसुनवाई वातावरण में इतना आक्रोश और विरोध ले आई कि प्रशासन को मंच छोड़कर लौटना पड़ा। ग्रामीणों ने पहले शांतिपूर्वक विरोध पंजीयन कराया, हजारों आपत्तियों से भरे फॉर्म जमा किए और जब पावती नहीं दी गई, तो भीड़ आक्रोशित हो उठी। नारों की गूंज और प्रशासन की खामोशी के बीच जनसुनवाई बीच में ही स्थगित करनी पड़ी।

देखिए विरोध का वीडियो: क्लिक करे


ग्रामीणों की चिंता: खेती बर्बाद, हवा जहरीली, पानी दुर्लभ

भीड़ में सबसे आगे थीं महिलाएं – सिर पर दुपट्टा, हाथों में पोस्टर, और आंखों में आक्रोश। बच्चों ने मासूमियत से सवाल उठाए –
“अगर धुआं आएगा तो हम स्कूल कैसे जाएंगे?”

ग्राम की बुजुर्ग महिला कमली बाई ने रोते हुए कहा –
“हमने तो ज़िंदगी काट ली, अब क्या हमारी बहू-बेटियां और पोते भी दवा खा-खाकर जिएंगे?”

“यह फैक्ट्री नहीं, विनाश का दरवाज़ा है” – ग्रामीणों की एकजुट आवाज़

टकेश्वर, ग्राम अलदा के जागरूक किसान ने बताया –
“हमने सिलतरा का उदाहरण देखा है। जहां-जहां स्पंज आयरन फैक्ट्री लगी, वहां ज़मीन बंजर हो गई, फसलें मरीं और लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा नहीं मिली। हम अपनी खेती बचाना चाहते हैं, हम गांव में काला धुआं नहीं चाहते।”

मनोज, एक अन्य किसान बोले –
“हमारी जीविका खेती है। कंपनी आ जाएगी तो पानी सूख जाएगा, खेती मर जाएगी, और हमें रोटी के लिए शहरों में भटकना पड़ेगा।”

महिलाओं की चेतावनी: जान दे देंगे, लेकिन फैक्ट्री नहीं लगने देंगे

गांव की महिलाओं ने डटकर विरोध किया। उन्होंने कहा –
“कंपनी आई तो जल, वायु और ध्वनि – तीनों प्रदूषण साथ आएंगे। गांवों की शांति टूटेगी, बीमारियाँ बढ़ेंगी। हम अपनी जान दे सकते हैं लेकिन अपनी जमीन और बच्चों का भविष्य किसी कंपनी को नहीं सौंप सकते।”


ग्रामीणों की प्रमुख मांगें:

  1. फैक्ट्री की स्थापना पर तत्काल रोक।
  2. पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र और वैज्ञानिक पर्यावरणीय अध्ययन।
  3. ग्रामीणों की आपत्तियों को आधिकारिक रूप से दर्ज कर उन्हें सार्वजनिक रूप से उत्तर दिया जाए।
  4. कृषि और जल संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए।
  5. ग्रामीण जनसहमति के बिना कोई भी औद्योगिक गतिविधि प्रतिबंधित की जाए।

यह विरोध सिर्फ एक फैक्ट्री के खिलाफ नहीं है, यह लड़ाई है गांव की मिट्टी, हवा, पानी और आने वाली पीढ़ियों की रक्षा की।
अलदा की आवाज़ अब प्रशासन के दरवाजे तक पहुंच चुकी है – और सवाल यही है कि क्या यह आवाज़ सुनी जाएगी, या फिर इतिहास दोहराया जाएगा?

अब प्रशासन और सरकार को तय करना है – वे किसके साथ हैं? जन के या जनविरोधी ‘विकास’ के?


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