बलौदाबाजार वनमंडल में 3 साल में 52 जंगली जानवरों की मौत, 13 मौतें अब भी ‘अज्ञात’। Chhattisgarhtalk.com की पड़ताल में वन विभाग की बड़ी लापरवाही उजागर।
Chhattisgarhtalk.com की पड़ताल में बड़ा खुलासा:
छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार वनमंडल से बीते तीन वर्षों में जंगली जीवन को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वे विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं। वन विभाग की आधिकारिक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2023 से 2025 के बीच जिले के जंगलों में कुल 52 जंगली जानवरों की मौत हुई, जिनमें से 13 की मौत का कारण आज तक अज्ञात है। यह आंकड़ा न केवल वन्यजीव संरक्षण व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि मौत के बाद जांच और पोस्टमॉर्टम जैसी अनिवार्य प्रक्रियाओं में कितनी लापरवाही बरती जा रही है। जंगलों में तैरता सन्नाटा अब सवालों में बदल गया है— क्या इन मौतों की जांच कभी पूरी हुई? क्या वन विभाग ने सचमुच जिम्मेदारी निभाई?
रिपोर्ट खोलती है चौंकाने वाले आंकड़े
DFO गणवीर धमसील की आधिकारिक रिपोर्ट में जो डेटा दर्ज है, वो वन विभाग की निगरानी और जवाबदेही दोनों पर सवाल खड़ा करता है—
साल 2023: कुल मौतें: 15
आवारा कुत्तों के हमले से: 8
प्राकृतिक कारणों से: 2
बीमारी से: 2
अज्ञात कारणों से: 3
साल 2024: कुल मौतें: 22
आवारा कुत्तों के हमले से: 4
वन्यप्राणियों के हमले से: 3
प्राकृतिक कारणों से: 4
पानी में डूबने से: 1
अज्ञात कारणों से: 6
आपसी लड़ाई में: 1
अवैध शिकार से: 2
वाहन दुर्घटना से: 1
साल 2025 (जनवरी-अक्टूबर): कुल मौतें: 15
आवारा कुत्तों के हमले से: 3
वन्यप्राणियों के हमले से: 3
प्राकृतिक कारणों से: 2
बीमारी से: 1
अज्ञात कारणों से: 4
अवैध शिकार से: 1
वाहन दुर्घटनाओं से: 1
तीन साल का कुल जोड़: 52 मौतें, जिनमें 13 का कारण आज तक ‘अज्ञात’।
‘अज्ञात मौतें’ – सबसे बड़ा सवाल
यह वो आंकड़ा है जिसने पूरा मामला हिला दिया है। कुल 13 जंगली जानवर — जिनकी न तो मौत की वजह तय है, न किसी रिपोर्ट में साफ़ जवाब।
- क्या इनका पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ?
- क्या सैंपल नहीं लिए गए?
- या फिर रिपोर्ट दबा दी गई?
Chhattisgarhtalk.com की पड़ताल में पता चला है कि कई बार वन विभाग की टीम घटनास्थल पर देर से पहुंचती है, शव सड़ जाता है और जांच अधूरी रह जाती है। ऐसे में मामला “अज्ञात” बताकर खत्म कर दिया जाता है। यानी मौतें दर्ज होती हैं, लेकिन सच्चाई फाइलों में दफन रह जाती है।
जंगलों पर ‘कुत्तों’ का कब्जा
रिपोर्ट का सबसे खतरनाक हिस्सा यह है कि तीन सालों में 15 जंगली जानवरों की मौत आवारा कुत्तों के हमलों से हुई। हिरण, सियार, नीलगाय और सुअर — कोई भी सुरक्षित नहीं। बरनवापारा अभयारण्य के आसपास बसे गांवों में आवारा कुत्तों के झुंड अब जंगलों तक पहुंच गए हैं। रात में ये झुंड हिरणों पर झपट पड़ते हैं, और कई बार वन विभाग की टीम मौके तक नहीं पहुंच पाती।
वन्यजीवों का ‘खामोश नरसंहार’: अवैध शिकार के मामले भी रिपोर्ट में दर्ज हैं। तीन वर्षों में दो आधिकारिक केस, लेकिन हकीकत इससे कहीं गहरी है।
Chhattisgarhtalk.com की पड़ताल की पड़ताल में खुला सच
Chhattisgarhtalk.com ने जब पिछले तीन वर्षों के सभी 52 मामलों की पड़ताल की तो पाया कि ज्यादातर मामलों में मौके की रिपोर्ट अधूरी है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट कई बार ‘अस्पष्ट’ शब्द से खत्म होती है। फोटो या GPS लोकेशन का रिकॉर्ड कई केसों में गायब है।
इससे ये सवाल उठता है —अगर जंगली जानवरों की मौत का कारण ही नहीं पता चलेगा, तो संरक्षण कैसे होगा?
सरकार की नीतियों पर भी उठे सवाल
राज्य सरकार हर साल करोड़ों का बजट वन्यजीव संरक्षण पर खर्च करती है, लेकिन जब मैदान में डेटा मांगा जाता है, तो जवाब “अज्ञात” में बदल जाता है। पिछले तीन वर्षों में न तो कोई बड़ी जांच कमेटी बनी, न किसी अधिकारी पर कार्रवाई हुई। किसी भी रिपोर्ट में जिम्मेदारी तय नहीं की गई।
13 मौतें अब भी रहस्य – क्यों नहीं हुई सही जांच?
वन विभाग की इस रिपोर्ट में सबसे बड़ा सवाल 13 अज्ञात मौतों का है।
- क्या इन मृत जानवरों का पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ?
- क्या रिपोर्ट आने के बाद किसी उच्चस्तरीय जांच का आदेश नहीं दिया गया?
- अगर दिया गया तो उसका परिणाम क्या रहा?
Chhattisgarhtalk.com की पड़ताल में यह बात सामने आई है कि अधिकांश मामलों में मृत जानवरों की पहचान और सैंपल कलेक्शन का रिकॉर्ड अधूरा रहा। कई बार मौके पर टीम पहुंचने में देरी हुई, जिससे शव सड़ चुका था और मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका।
क्या छिपाया जा रहा है?
13 मौतें “अज्ञात” बताने का मतलब सिर्फ डेटा की कमी नहीं, बल्कि जवाबदेही से बचना भी हो सकता है। अगर हर मौत की मेडिकल रिपोर्ट पब्लिक होती, तो सच्चाई सामने आती। मगर आज भी यह जानकारी जनता से छिपी है, जबकि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत ऐसी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए।
1. कानून क्या कहता है?
भारत सरकार का “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972” (Wildlife Protection Act, 1972), विशेषकर इसकी धारा 50, 51 और 55 में यह साफ लिखा है कि —अगर किसी जंगली जानवर की अप्राकृतिक या संदिग्ध परिस्थितियों में मौत होती है, तो मौके पर वन अधिकारी को तुरंत जांच करनी होती है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (PM रिपोर्ट) अनिवार्य रूप से तैयार की जानी चाहिए। रिपोर्ट की एक प्रति उच्चाधिकारी को भेजना आवश्यक है। यदि किसी तरह का शिकार, हमला, या जहरीले पदार्थ की आशंका हो, तो एफआईआर दर्ज कर अपराध दर्ज किया जाना चाहिए। इन नियमों का उद्देश्य यह है कि किसी भी जंगली जानवर की मौत “सिर्फ संख्या” बनकर न रह जाए, बल्कि उसका वैज्ञानिक और कानूनी विश्लेषण हो।
2. “अज्ञात मौत” का मतलब क्या है?
जब जांच पूरी नहीं होती, या पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट अधूरी या अनुपलब्ध होती है, तब मौत को “अज्ञात” लिखा जाता है।
इसका अर्थ होता है —या तो वन विभाग की टीम मौके पर समय से नहीं पहुंची, या शव सड़ चुका था और सैंपल नहीं लिया जा सका, या फिर जांच अधूरी छोड़ दी गई। लेकिन कानून में “अज्ञात कारणों से मौत” कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं माना जाता। यह केवल “जांच अधूरी” होने का संकेत है। ऐसे मामलों में री-इन्वेस्टिगेशन (पुनः जांच) जरूरी होती है, जो शायद बलौदाबाजार वनमंडल में कभी नहीं हुई।
3. क्या वन विभाग ने PM कराया था?
Chhattisgarhtalk.com की जांच में यह बात सामने आई है कि….कई मामलों में पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (PM Report) फाइल में दर्ज ही नहीं है। यह वन्यजीव संरक्षण नियमों की सीधी उल्लंघना है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) और राज्य वन्यजीव बोर्ड के दिशा-निर्देशों के अनुसार, हर मृत जंगली जानवर का पोस्टमॉर्टम अनिवार्य है। उसकी रिपोर्ट कम से कम 10 वर्षों तक संरक्षित रखी जानी चाहिए। और हर मौत का डेटा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) को भेजना चाहिए। अगर ये प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, तो यह प्रशासनिक चूक है।
📍बलौदाबाजार से सागर साहू की ग्राउंड रिपोर्ट
चंद्रकांत वर्मा, संपादक – ChhattisgarhTalk.com
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