एक खरगोश ने दिखाया कानून का रास्ता– बीमार जानवर बेचने पर शिओम एग्रो फार्म पर 28,350 रुपये जुर्माना, बलौदाबाजार उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला

बीमार जानवर बेचने पर शिओम एग्रो फार्म पर 28,350 रुपये का जुर्माना, बलौदाबाजार उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला (Chhattisgarh Talk)
बीमार जानवर बेचने पर शिओम एग्रो फार्म पर 28,350 रुपये का जुर्माना, बलौदाबाजार उपभोक्ता फोरम का बड़ा फैसला (Chhattisgarh Talk)

बलौदाबाजार उपभोक्ता फोरम ने बीमार खरगोश बेचने पर शिओम एग्रो फार्म को दोषी मानते हुए 28,350 रुपये जुर्माने का आदेश दिया है। पढ़िए पूरी रिपोर्ट।

बलौदाबाजार: कभी-कभी एक छोटी सी चूक बड़ा सबक बन जाती है – और इस बार सबक बना एक खरगोश। एक बीमार खरगोश की मौत ने न सिर्फ खरीदार को झटका दिया, बल्कि विक्रेता को 28,350 रुपये की कानूनी सजा भी दिला दी। छत्तीसगढ़ के ग्राम देवदा, आरंग स्थित शिओम एग्रो फार्म ने उपभोक्ता को बीमार खरगोश बेचा, जिसके बाद मामला बलौदाबाजार जिले के उपभोक्ता फोरम तक पहुंचा और अंततः एक ऐसा फैसला आया, जो पूरे पशुपालन और फार्मिंग सेक्टर के लिए चेतावनी बन गया है।


विज्ञापन के जाल में उलझा उपभोक्ता

कहानी की शुरुआत होती है विवेक निराला से, जो पशुपालन को एक व्यवसायिक संभावना के रूप में देख रहे थे। शिओम एग्रो फार्म के रंगीन ब्रोशर और आकर्षक वादों से प्रभावित होकर उन्होंने 19 खरगोश खरीदे। फार्म ने उन्हें भरोसा दिलाया – “खरगोशों पर मुफ्त बीमा है, यदि सभी मर जाते हैं तो 70% राशि वापस मिलेगी।” लेकिन सपनों की ये खेती कुछ ही दिनों में बिखर गई।


बीमार खरगोश, बुझती उम्मीदें

खरीदी के बाद विवेक ने देखा कि खरगोशों में अस्वस्थता के लक्षण हैं। इलाज की कोशिशें कीं, पर हालात बिगड़ते गए। कुछ ही समय में सभी खरगोशों की मौत हो गई। उपभोक्ता ने फार्म को इसकी जानकारी दी, लेकिन वहां से कोई मदद नहीं मिली, न ही पैसे वापस किए गए। जब हर रास्ता बंद हुआ, तब विवेक ने कानून की शरण ली और उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कराई।


खरगोश का पोस्टमार्टम बना सबसे मजबूत गवाह

मामला जब बलौदाबाजार जिला उपभोक्ता प्रतितोष आयोग पहुंचा, तो आयोग के अध्यक्ष छमेश्वर लाल पटेल व सदस्यगण हरजीत सिंह चांवला और शारदा सोनी ने दोनों पक्षों की गहन सुनवाई की।

लेकिन निर्णायक मोड़ तब आया, जब खरगोशों का पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आया। रिपोर्ट में साफ लिखा था – “खरगोश पहले से बीमारी से ग्रसित थे।”

यानी उपभोक्ता को शुरुआत से ही अस्वस्थ जानवर बेचे गए थे। यह रिपोर्ट न सिर्फ फार्म की लापरवाही साबित करती थी, बल्कि मामले को ठोस आधार भी दे रही थी।


फोरम का फैसला – गुमराह नहीं कर सकते व्यापारी

आयोग ने पाया कि—

  • विक्रेता ने सेवा में भारी कमी की,
  • ब्रोशर में किए वादे भ्रामक थे,
  • उपभोक्ता को मानसिक और आर्थिक नुकसान हुआ।

फोरम ने शिओम एग्रो फार्म को आदेश दिया कि वह उपभोक्ता को—

  • खरगोशों की लागत का 70% यानी ₹21,350,
  • मानसिक क्षति के लिए ₹5,000,
  • वाद व्यय ₹2,000,

कुल ₹28,350 की क्षतिपूर्ति 45 दिनों के भीतर अदा करे।


एक खरगोश ने दिखाया उपभोक्ता का हक

यह कोई आम मामला नहीं था। यह उस ‘छोटे उपभोक्ता’ की बड़ी जीत है, जो अक्सर बहसों, कागजों और तकनीकी पेंचों में दबा दिया जाता है। विवेक निराला ने हार नहीं मानी – उन्होंने सबूत जुटाए, रिपोर्ट कराई और कानून के दरवाजे खटखटाए।


पशुपालकों और कारोबारियों के लिए सबक

यह फैसला उन सभी विक्रेताओं के लिए चेतावनी है जो सिर्फ लाभ के लिए नियमों और गुणवत्ता से समझौता करते हैं। साथ ही यह पशुपालकों, पशु प्रेमियों और छोटे उद्यमियों के लिए हौसला है – कि कानून उनकी बात सुनता है।


क्या आप भी किसी धोखे के शिकार हुए हैं? तो ये बातें याद रखें—

  • किसी भी उत्पाद की खरीद से पहले शर्तें लिखित में लें।
  • समस्या आने पर फोटो, वीडियो और मेडिकल/टेक्निकल रिपोर्ट रखें।
  • समाधान न मिले तो उपभोक्ता फोरम में जाएं।

बलौदाबाजार से निकला फैसला, पूरे प्रदेश में चर्चा

इस मामले ने न सिर्फ एक उपभोक्ता को न्याय दिलाया, बल्कि उपभोक्ता अधिकारों की शक्ति को फिर से स्थापित किया। अब चर्चा हर जगह है – सोशल मीडिया से लेकर जिला स्तरीय व्यावसायिक संगठनों तक, यह केस मिसाल बन चुका है।


एक खरगोश की मौत ने एक विक्रेता की साख गिराई, उपभोक्ता को हक दिलाया और पूरे सिस्टम को चेताया — अब सेवा में लापरवाही की कोई जगह नहीं।


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