बलौदाबाजार शिक्षा विभाग: स्कैनिंग प्रक्रिया और स्लो इंटरनेट के कारण शिक्षा सत्र शुरू होने के एक हफ्ते बाद भी 44,839 बच्चों को किताबें नहीं मिलीं।
बलौदाबाजार: शिक्षा की स्कैनिंग में स्क्रॉल हो रहा बचपन! एक तरफ प्रदेश सरकार शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का दावा कर रही है, दूसरी ओर ज़मीनी हालात बिल्कुल उलट हैं। जिले में स्कूल खुले एक सप्ताह बीत चुका है, लेकिन अब तक 44,839 विद्यार्थियों को निशुल्क पुस्तकें नहीं मिल पाई हैं। नतीजा ये कि शालाएं खुली हैं, बच्चे आते हैं… लेकिन पढ़ाई ठप है। शिक्षा विभाग के ‘नवाचारपूर्ण नियम’ ने इस बार बच्चों के हाथ में किताब की जगह उलझन और इंतज़ार थमा दिया है।
एक सप्ताह बीत गया, शालाएं खुल चुकी हैं – लेकिन पढ़ाई नहीं शुरू हुई
बलौदाबाजार शिक्षा विभाग: नया सिस्टम, पुराने हालात – किताबें स्कैन करो, फिर बांटो!
शासन ने इस वर्ष एक नई व्यवस्था लागू की है जिसके तहत किसी भी शासकीय स्कूल में पुस्तक स्कैन किए बिना वितरित नहीं की जा सकती। अब हर पुस्तक को दो बार बारकोड से स्कैन कर ‘टीबीसी सॉफ्टवेयर’ में दर्ज करना जरूरी है। इस स्कैनिंग में स्कूल का नाम, UDISE कोड, संकुल और शिक्षक की जानकारी अपने आप फीड हो जाती है।
लेकिन असल समस्या यह है – गांवों में इंटरनेट ही नहीं है!
- कई स्कूलों में नेटवर्क गायब है।
- कहीं मोबाइल डेटा इतना धीमा है कि एक दिन में सिर्फ 8-10 किताबें ही स्कैन हो पा रही हैं।
- ब्लॉक की 164 प्राथमिक और 92 मिडिल स्कूलों में अब तक एक भी किताब स्कैन नहीं हुई।
बलौदाबाजार शिक्षा विभाग: 44 हजार से अधिक छात्र पुस्तकों की राह तक रहे
स्कूल स्तर | स्कूलों की संख्या | छात्र संख्या |
---|---|---|
प्राथमिक | 164 | 22,084 |
मिडिल | 92 | 14,225 |
हाई स्कूल | 15 | 8,530 |
कुल | 271 | 44,839 |
🔹 अब तक सिर्फ 8 हाईस्कूलों में स्कैनिंग का कार्य पूरा हो पाया है।
🔹 बाकी सभी स्कूलों में या तो स्कैन शुरू ही नहीं हुआ, या बीच में अटक गया।
बलौदाबाजार शिक्षा विभाग: बच्चों के लिए स्कूल बना मध्यान्ह भोजन केंद्र!
किताबें ना होने के कारण ब्लॉक की सैकड़ों शालाओं में न तो क्लास लग पा रही है, न बच्चों की पढ़ाई हो रही है। बच्चे स्कूल आते हैं, खाना खाते हैं, और खाली हाथ वापस चले जाते हैं। यह स्थिति ग्रामीण इलाकों में ‘शिक्षा नहीं, सिर्फ भोजन’ की नीति जैसी बन गई है।
“बच्चों को ना पढ़ाई मिल रही है, ना किताबें… सिर्फ एक थाली भोजन से शिक्षा पूरी नहीं होती।” – एक पालक, नवापारा गांव से
शिक्षा विभाग को पता था फिर भी किताबें देरी से भेजी गईं
शिक्षा विभाग को पूर्व में ही यह ज्ञात था कि इस बार पुस्तकों को स्कैन करने के बाद ही वितरित करना है। लेकिन फिर भी किताबें जून के मध्य (16-18 जून) को ही स्कूलों तक पहुंचीं।
🟠 हाईस्कूलों को 3 जून को ही किताबें मिल गई थीं, इसलिए वहां स्कैनिंग थोड़ी बेहतर रही।
🔴 लेकिन प्राथमिक और मिडिल स्कूलों में किताबें देर से आईं, और अब स्कैनिंग के कारण वितरण और भी लेट हो गया।
छह स्कूल ऐसे भी हैं – जहां किताबें ही नहीं पहुंचीं!
बलौदाबाजार ब्लॉक के ताराशिव संकुल अंतर्गत 6 शालाएं ऐसी हैं जहां आज तक किताबें ही नहीं पहुंची हैं:
- ग्राम ताराशिव: प्राथमिक और मिडिल शाला
- ग्राम अमलकुंडा: प्राथमिक और मिडिल शाला
- ग्राम मिश्राईनडीह: प्राथमिक शाला
- ग्राम भद्रा: प्राथमिक शाला
यह ट्रांसपोर्टर की लापरवाही और अधिकारियों की चुप्पी का जीवंत उदाहरण है।
इंटरनेट स्पीड सबसे बड़ी बाधा
ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की हालत बेहाल है। शिक्षक-शिक्षिकाएं लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन नेटवर्क न होने के कारण स्कैनिंग असंभव हो गई है।
“हम 60 बच्चों को किताब देना चाहते हैं, लेकिन नेटवर्क इतना स्लो है कि दिनभर में सिर्फ 7-8 किताबें ही स्कैन हो पा रही हैं।” :एक शिक्षक ने बताया
सबसे चिंताजनक बात ये है कि विभाग ने स्कैनिंग की कोई समय सीमा तय नहीं की है। इसका मतलब यह कि कितने हफ्तों या महीनों में किताबें बच्चों तक पहुंचेंगी, यह अनिश्चित है।
बच्चों को किताबें क्यों नहीं बांटी जा रही?
सरकार का तर्क है कि पहले किताबें स्कैन करके सुरक्षित दर्ज की जाएं, ताकि कोई शिक्षक किताबें न बेच सके और बच्चों को ठोस प्रमाण के साथ ही सामग्री दी जाए।
लेकिन क्या बच्चों की पढ़ाई को रोक देना इसका समाधान है?
बीईओ बोले – स्कैन पूरा होने पर ही बंटेगी किताब
राजेन्द्र टंडन, खंड शिक्षा अधिकारी (BEO), बलौदाबाजार ने बताया:
“स्कूलों में स्कैनिंग कार्य चल रहा है। इंटरनेट की समस्या गंभीर है, हमने DEO और टेक्निकल टीम को जानकारी दी है। जब स्कैनिंग पूरी होगी तभी किताबें बांटी जाएंगी, ये शासन का आदेश है।”
कांग्रेस का तीखा हमला – “किताबें नहीं मिली, शराब मिल रही”
हितेंद्र ठाकुर, पूर्व जिला कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है:
“पहली बार ऐसा हुआ कि स्कूल खुले एक सप्ताह हो गए, लेकिन बच्चों को किताबें नहीं मिलीं। पहले की सरकारें पहले दिन ही किताबें और यूनिफॉर्म देती थीं। वर्तमान सरकार की प्राथमिकता शिक्षा नहीं, शराब है।”
शासन की नई स्कैनिंग व्यवस्था की नीयत भले अच्छी हो, लेकिन इसकी ग्रामीण व्यवहारिकता पर ध्यान नहीं दिया गया।
- परिणामस्वरूप हज़ारों बच्चों की पढ़ाई रुकी हुई है, शिक्षक असहाय हैं और अभिभावक परेशान।
- यह व्यवस्था शिक्षा के डिजिटलीकरण के नाम पर शिक्षा के अधिकार का मज़ाक बन गई है।
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