



बलौदाबाजार के पत्थरचूआ में श्री सीमेंट खदान विस्तार के विरोध में जनसुनवाई हंगामेदार रही। ग्रामीणों ने पर्यावरणीय नुकसान, वादाखिलाफी और CSR में अनदेखी का आरोप लगाया। पर्यावरण अधिकारी को मंच छोड़ना पड़ा।
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़: अगर यही विकास है, तो हमारे बच्चों के फेफड़े क्यों जल रहे हैं? हमारी फसलें क्यों सूख रही हैं? हमारे गांव की बेटियां स्कूल क्यों छोड़ रही हैं? – यह सवाल उस जनसुनवाई में गूंजा, जो श्री सीमेंट लिमिटेड की खदान विस्तार परियोजना के लिए रखी गई थी।
लेकिन जवाब देने के बजाय मंच पर बैठे पर्यावरण विभाग के अधिकारी पी.के. रबड़े वहां से उठकर चले गए — और यही बन गया इस जनसुनवाई का सबसे बड़ा बयान।
श्री सीमेंट जनसुनवाई: सुनवाई से ज्यादा साजिश लगी ये जनसुनवाई
बलौदाबाजार जिले के पत्थरचूआ गांव में मंगलवार को आयोजित जनसुनवाई में तीन गांवों – मोहरा, भालूकोना और पत्थरचूआ – के सैकड़ों ग्रामीण शामिल हुए। यहां श्री सीमेंट लिमिटेड के खपराडीह प्लांट के अंतर्गत 127.046 हेक्टेयर क्षेत्र में चुना पत्थर खनन के लिए पर्यावरणीय अनुमति हेतु यह आयोजन किया गया था।
लेकिन जिस जनसुनवाई का उद्देश्य जनता की राय जानना था, वह जल्द ही हंगामे और आक्रोश का मंच बन गया।
श्री सीमेंट जनसुनवाई: वादों का बोझ, हकीकत में शून्य
ग्रामीणों ने खुले मंच से कहा कि कंपनी ने पहले भी वादे किए –
- गांव में रोजगार
- बेहतर सड़कें
- पीने का पानी
- शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं
लेकिन इन वादों का हश्र सिर्फ सीमेंट की दीवारों पर लिखे पोस्टरों तक ही रहा।
ग्राम मोहरा की सरपंच तारिणी वर्मा ने मंच से आवाज उठाई – “हमें इस जनसुनवाई की कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई। ये आयोजन हमारे गांव में होना चाहिए था, लेकिन इसे दूर रखकर केवल दिखावा किया गया है।”
श्री सीमेंट जनसुनवाई: गैस कांड से डरे लोग, CSR बना छलावा
खपराडीह गैस रिसाव कांड का दर्द अब भी लोगों के दिल में ताजा है। रामखेलावन ध्रुव जैसे स्थानीयों ने बताया कि रिसाव के बाद कई बच्चों की तबीयत बिगड़ी, लेकिन कंपनी ने कोई जिम्मेदारी नहीं ली।
वहीं, CSR फंड के नाम पर लगाए गए बोर्ड तो दिखते हैं, लेकिन गांवों में उनका कोई असर नहीं दिखता।
प्रभु बंजारे, एक और ग्रामीण, ने बताया – “CSR में सिर्फ कागजी खानापूर्ति होती है। असल में गांव की हालत पहले से भी बदतर हो गई है।”
सड़कें टूटीं, खेत सूखे, रोजगार खत्म
जनसुनवाई में आए अधिकांश ग्रामीणों ने कंपनी की खनन गतिविधियों को प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और जीवन-स्तर गिरने की जड़ बताया।
- गांव की सड़कों पर गड्ढे नहीं, खदान जैसे गड्ढे हैं।
- नलकूप और कुएं सूख चुके हैं।
- युवाओं को न तो खदान में काम मिला, न प्रशिक्षण।
मंच से भागे अधिकारी, जनता रही सवालों में
जब मंच से सवालों की बौछार हुई, तो पर्यावरण विभाग के अधिकारी पी.के. रबड़े ने कार्यक्रम बीच में ही छोड़ दिया। न तो उन्होंने कोई जवाब दिया, न मीडिया से बात की।
यह दृश्य ग्रामीणों के संदेह को और गहरा कर गया – क्या सच में यह जनसुनवाई, जनता की थी?
राजनीतिक विरोध भी खुलकर सामने आया
जिला कांग्रेस अध्यक्ष सुमित्रा घृतलहरे और कई स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने मंच पर ही इस आयोजन की पारदर्शिता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि “कंपनी अपने समर्थन में लोगों को बुलाकर प्रायोजित भीड़ खड़ी कर रही है, जबकि असली प्रभावितों की आवाज दबाई जा रही है।”
प्रशासन और कंपनी की प्रतिक्रियाएं
अपर कलेक्टर दीप्ति गौटे ने जनसुनवाई को नियमपूर्वक संपन्न बताया, वहीं कंपनी के पर्यावरण प्रमुख सुनील देशमुख ने कहा –
“हम सभी बिंदुओं पर कार्य करेंगे। पर्यावरण और समाज के प्रति हमारी पूरी प्रतिबद्धता है। जो मुद्दे उठे हैं, उन पर गंभीरता से विचार किया जाएगा।”
श्री सीमेंट जनसुनवाई: जन का विरोध या जन की चेतावनी?
श्री सीमेंट की यह जनसुनवाई एक मिसाल बन गई — कि जब ‘विकास’ लोगों की ज़मीन, जीवन और जल को लीलने लगे, तो जनता खुद मंच बन जाती है, माइक उठा लेती है, और सवालों से सत्ता को बेनकाब कर देती है।
यह सिर्फ विरोध नहीं था, यह चेतावनी थी – कि बिना भरोसे और बिना जवाबदेही, कोई भी परियोजना ‘विकास’ नहीं कहलाती।
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