



बलौदाबाजार में लोक अदालत के नाम पर पुलिस की मनमानी! गरीबों और मजदूरों से जबरन वसूली, बेवजह चालान और पत्रकार से बदसलूकी की घटना से जनता में आक्रोश। पढ़ें पूरी खबर!
बलौदाबाजार: लोक अदालत का उद्देश्य लंबित मामलों का निपटारा करना और विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना है, लेकिन बलौदाबाजार जिले में इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल की कप्तानी वाली पुलिस टीम लोक अदालत के नाम पर खुद चालान काटकर केस बढ़ाने में जुटी हुई है।
बलौदाबाजार ट्रैफिक पुलिस लोक अदालत के नाम पर चालान काट रही है। इस लिहाज से देखें तो बलौदाबाजार जिले में लोक अदालत का उद्देश्य पूरी तरह से बदलता नजर आ रहा है। क्योंकि जिले की पुलिस जबरन चालान काटकर नए केस बढ़ाने में जुटी हुई है। मजदूरों और ग्रामीणों से डरा-धमका कर, डंडे का भय दिखाकर पैसे वसूले जा रहे हैं, जिससे आम जनता में नाराजगी है। मजे की बात तो यह हैं कि चालान स्थल पर टीआई मौजूद नही था।
ग्रामीणों को बनाया जा रहा है शिकार, मजदूरों की दिनभर की कमाई लूट रही पुलिस
काम करके लौट रहे मजदूरों और ग्रामीणों को बनाया जा रहा शिकार! सोमवार शाम 6 बजे बिलासपुर (लटुवा) रोड, शुक्लाभाठा मोड़ पर एक चौंकाने वाला नजारा देखने को मिला।
तीन ट्रैफिक पुलिसकर्मी—
🚔 प्रधान आरक्षक महेंद्र कुमार कोर्ते
🚔 आरक्षक प्रमोद कुमार मांजरे
🚔 आरक्षक कृष्ण कुमार पटेल
ने सड़क पर चलते वाहनों को अचानक रोकना शुरू कर दिया।
पीड़ित ग्रामीणों का कहना है कि—
✔️ जिनके पास सभी दस्तावेज पूरे थे, उन्हें भी कोई न कोई बहाना बनाकर चालान थमा दिया गया।
✔️ जो लोग चालान भरने से इनकार कर रहे थे, उन्हें धमकाया गया।
✔️ कई मजदूरों का पूरा दिनभर का मेहनताना पुलिस की जेब में चला गया।
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जो लोग विरोध कर रहे थे, उन्हें डंडे का डर दिखाया जा रहा था। कई लोगों के साथ गाली-गलौज और बदसलूकी भी की गई। मज़दूरी कर घर लौट रहे गरीब मजदूरों की दिनभर की कमाई पुलिस के चालान की भेंट चढ़ गई।
प्रधान आरक्षक महेंद्र कुमार कोर्ते, आरक्षक प्रमोद कुमार मांजरे और कृष्ण कुमार पटेल पर ग्रामीणों के साथ बदसलूकी करने, गाली-गलौज करने और डंडे का भय दिखाकर पैसे वसूलने के आरोप लगे हैं।
पत्रकार ने उठाए सवाल, तो खुद बन गए शिकार!
इस अवैध वसूली का पर्दाफाश तब हुआ जब पत्रकार चंद्रकांत वर्मा ने पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए। उन्होंने ट्रैफिक पुलिसकर्मियों से पूछा कि बिना ट्रैफिक इंस्पेक्टर (TI) की मौजूदगी के चालान कैसे काटा जा सकता है? इसपर पुलिसकर्मियों ने उन्हें ही धमकाना शुरू कर दिया और अदालत में घसीटने की चेतावनी दी। इतना ही नहीं, बल्कि उनके ऊपर 500 रुपये का चालान काट दिया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि चालान पर “लोक अदालत” लिखा था। इसका मतलब साफ है कि यह पूरी कार्रवाई सिर्फ केस बढ़ाने के लिए की जा रही थी, जिससे लोक अदालत में ज्यादा से ज्यादा मामले पहुंचे और पुलिस को अवैध वसूली करने का मौका मिले।

बड़े अधिकारियों को “कुछ पता ही नहीं”! या सबकुछ उनकी जानकारी में हो रहा है?
जब इस घटना पर ट्रैफिक डीएसपी अमृत कुजूर से सवाल किया गया, तो उन्होंने चौंकाने वाला बयान दिया—
“कौन चालान कर रहा मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, मैं गिरौदपुरी मेले की ड्यूटी पर हूं!”
वहीं, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) हेमसागर सिदार ने कहा कि “वे मामले की जांच कराएंगे और पता लगाएंगे कि बिना टीआई (Traffic Inspector) के चालान कौन कर रहा था?”
अब बड़ा सवाल यह उठता है कि?
❓ अगर जिले के बड़े अधिकारियों को इसकी जानकारी नहीं है, तो क्या पुलिस पूरी तरह बेलगाम हो गई है?
❓ क्या निचले स्तर के पुलिसकर्मी खुद फैसला कर रहे हैं कि किसे लूटना है?
❓ अगर यह पुलिस की “आधिकारिक नीति” नहीं है, तो दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
लोक अदालत का उद्देश्य बदनाम कर रही बलौदाबाजार पुलिस! जनता में भारी आक्रोश
यूं तो लोक अदालत का उद्देश्य होता हैं कि, “लंबित मामलों का निपटारा करना और विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना है। बलौदाबाजार पुलिस ने इस उद्देश्य को पूरी तरह से बदलकर रख दिया है। अब लोक अदालत का नाम लेकर गरीबों से जबरन वसूली हो रही है, मजदूरों का शोषण किया जा रहा है और पत्रकारों को धमकाया जा रहा है।
लोक अदालत का असली मकसद होता है—
✅ विवादों को आपसी सहमति से सुलझाना है।
✅ आम जनता को शीघ्र और सुलभ न्याय देना
✅ छोटे-मोटे मामलों को जल्दी सुलझाना
✅ कोर्ट पर बढ़ते केस का भार कम करना
लेकिन बलौदाबाजार पुलिस ने लोक अदालत को गरीबों से वसूली करने का जरिया बना लिया है!
अब लोक अदालत के नाम पर—
❌ बिना वजह चालान काटकर पैसे वसूले जा रहे हैं।
❌ पत्रकारों तक को धमकाया जा रहा है।
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अगर यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा, तो न केवल जनता का विश्वास कानून व्यवस्था से उठ जाएगा, बल्कि लोक अदालत जैसी न्यायिक पहल की छवि भी धूमिल हो जाएगी। इस मनमानी से न्यायालय और न्यायाधीशों की छवि भी प्रभावित हो सकती है।
बड़ा सवाल—कब तक गरीबों का शोषण करती रहेगी पुलिस?
लोक अदालत जैसी महत्वपूर्ण न्यायिक पहल को बदनाम करने वाली इस हरकत ने पूरे न्यायिक तंत्र पर सवाल खड़ा कर दिया है।
अब देखना होगा कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर दोषियों पर कार्रवाई करता है या फिर पुलिस की यह मनमानी यूं ही जारी रहेगी।
जनता की मांग—दोषी पुलिसकर्मियों पर हो सख्त कार्रवाई
पुलिस की इस जबरदस्ती से जनता में भारी नाराजगी है। स्थानीय लोगों और ग्रामीणों ने प्रशासन से मांग की है कि ऐसे पुलिसकर्मियों पर सख्त कार्रवाई हो और लोक अदालत के नाम पर चल रही इस जबरन वसूली को तुरंत रोका जाए।
🚨 ऐसे पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।
🚨 बिना ट्रैफिक इंस्पेक्टर (TI) के काटे गए सभी चालानों की जांच हो।
🚨 लोक अदालत के नाम पर हो रही इस लूट को रोका जाए।
क्या गरीबों को लूटने के लिए बनी है लोक अदालत?
लोक अदालत गरीबों और मजदूरों के लिए न्याय का आखिरी सहारा होती है। लेकिन जब उसी लोक अदालत के नाम पर गरीबों और मजदूरों को लूटा जाने लगे, तो न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो जाते हैं।
अब देखना यह होगा कि—
✅ क्या प्रशासन दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करेगा?
✅ या फिर गरीबों का शोषण यूं ही जारी रहेगा?
अगर इस मामले पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो क्या जनता लोक अदालत पर भरोसा कर पाएगी?
लोक अदालत जो हैं विधिक साक्षरता के तहत राष्ट्रीय, राज्य और जिले स्तर पर होता हैं, जिले में डीजे अध्यक्ष होता हैं, और जेएमएफसी रैक का न्यायाधीश सचिव होता हैं और इनसे इस विषय पर चर्चा करना शेष हैं। न्यायालय में प्रकरणों की संख्या वैसे तो बहुत अधिक हैं ऐसे में इस प्रकार की कार्यवाही कर लोक अदालत में प्रकरणों की संख्या को और अधिक बढ़ाने का क्या अवचित हैं?
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