5वी शताब्दी के यह मंदिर में ग्रेनाइट से बना आठ भुजाओं वाली अष्टभुजी माता विराजमान है, गांव में आज भी खुदाई पर मिलते है खण्डित अवस्था मूर्तियां..
लखेश्वर यादव/जांजगीर चांपा: नवरात्रि की महापर्व की शुरुआत हो गई है माता रानी के दरबार में भक्त दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं मां के जयकारों से मंदिर गूंज उठे हैं जगह-जगह मां की महिमा देखने को मिल रही है छत्तीसगढ़ में भी सर्व सिद्ध शक्तिपीठ मां दक्षिणी काली अष्टभुजी मंदिर प्रसिद्ध है जिससे हजारों भक्तों की आस्था जुडी हुई है.
ग्रेनाइट से बना आठ भुजाओं वाली अष्टभुजी माता का मंदिर
छत्तीसगढ़ के सक्ती जिले के अड़भार में ग्रेनाइट से बना आठ भुजाओं वाली अष्टभुजी माता का मंदिर है, यह बहुत ही प्राचीन धार्मिक स्थल है इस मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है. साथ ही यह गांव में खुदाई पर पांचवी-छठवीं शताब्दी के अवशेष मिलते हैं. यह छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक है.
अड़भार गांव लगभग 07 किलोमीटर की परिधि में बसा यह नगर अपने आप में अजीब है. क्योंकि आज भी यहां के गांव के लोगों द्वारा जब भी कोई कार्य के लिए 150 से 200 मीटर की खुदाई किया जाता है तब किसी न किसी देवी देवता की मूर्तियां खण्डित अवस्था मिल जाती हैं. साथ ही भवन, घर बनाते समय खुदाई करने पर प्राचीन खंडित मूर्तियां या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के प्राचीन धातु के सामान मिल ही जाते हैं.
छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण तीर्थों में से एक है अष्टभुजी माता का मंदिर
मंदिर के पुजारी मनोज शर्मा ने chhattisgarhtalk.com को बताया की प्राचीन इतिहास में गांव में 8 द्वार का उल्लेख अष्टद्वार के नाम से मिलता है. अष्टभुजी माता का मंदिर और इस नगर के चारों ओर बने 8 विशाल दरवाजों की वजह से इसका प्राचीन नाम अष्ट द्वार और धीरे-धीरे अपभ्रंश होकर इस गांव का नाम अड़भार हो गया. आठ द्वारा के कारण ही अड़भार गांव का नाम पड़ा है.
अड़भार में मां अष्टभुजी मंदिर में दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है; यह बहुत ही प्राचीन धार्मिक स्थल है -श्रद्धालु
अरविंद तिवारी श्रद्धालु ने Chhattisgarh Talk को बताया की अड़भार में मां अष्टभुजी मंदिर में दक्षिणमुखी प्रतिमा विराजमान है, मंदिर को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है, पांचवी छठवीं शताब्दी के अवशेष इस स्थान पर मिलते हैं, मां अष्टभुजी आठ भुजाओं वाली हैं, यह बात तो अधिकांश लोग जानते हैं, लेकिन देवी के दक्षिण मुखी होने की जानकारी कम लोगों को ही है, मूर्ति के ठीक दाहिने और डेढ़ फीट की दूरी में देगुन गुरु की प्रतिमा योग मुद्रा में विराजे है, मां अष्टभुजी की प्रतिमा ग्रेनाइट पत्थर से बनी है.
बताया कि पूरे भारत में कोलकाता की दक्षिण मुखी काली माता और छत्तीसगढ़ में जांजगीर- चांपा से अलग हुए नवीन सक्ती जिले के मालखरौदा ब्लॉक अंतर्गत नगर पंचायत अड़भार की दक्षिणमुखी अष्टभुजी देवी के अलावा और कहीं भी देवी की प्रतिमा दक्षिणमुखी नहीं है, सिद्ध जगत जननी माता अष्टभुजी का मंदिर दो विशाल इमली पेड़ों के नीचे स्थित है.
शक्ति में मुंबई हावड़ा रेल मार्ग पर दक्षिण पूर्व की ओर 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अष्टभुजी माता का मंदिर प्रसिद्ध है लगभग 7 किलोमीटर की परिधि में बसे यहां हर 100 से 200 मीटर की खुदाई करने पर किसी न किसी देवी देवता की मूर्तियां मिल जाती है आज भी यहां लोगों को भवन बनाते समय प्राचीन टूटी फूटी मूर्तियों या पुराने समय के सोने चांदी के सिक्के प्राचीन धातु की कुछ ना कुछ सामग्री की अवशेष अवश्य मिलते हैं.