Amla Navami festival : आंवला नवमी त्यौहार क्यो मनाते हैं? क्यो महिलाएं आंवला के वृक्ष की पूजा अर्चना कर एक-दुसरे को सिंदूर लगाए साथ ही वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर प्रसाद ग्रहण किये पढ़िए
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ व्रत किया जाता है। इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसा करने से पर मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है।
Chhattisgarh Talk / बलौदाबाजार : बलौदाबाजार जिले में आंवला नवमी का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है महिलाओं ने आज सोमवार को आंवला के वृक्ष की पूजा अर्चना की वही एक दुसरे को सौभाग्य का प्रतीक सिंदूर लगाया। बलौदाबाजार मे यश 24 फिटनेस क्लब के तत्वावधान में इसका आयोजन किया गया जहाँ बड़ी संख्या में कल्ब परिवार के सदस्यों ने भाग लिया और आंवला नवमी पर वृक्ष की पूजा अर्चना कर उसके नीचे भोजन बनाकर प्रसाद ग्रहण किया। वही भाटापारा शहर थाने में भी पुलिस परिवार ने इसका आयोजन किया जिसमें पुलिस परिवार की महिलाओं एवं बच्चों ने उत्साह पूर्वक भाग लिया। वही बच्चों एवं महिलाओं के लिए कुर्सी दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया। साथ ही स्वादिष्ट भोजन का लुफ्त उठाए.
भाटापारा शहर थाना प्रभारी योगिता खापर्डे ने पुलिस परिवार के समस्त सदस्यों को आंवला नवमी त्यौहार की बधाई एवं शुभकामनाएं दी.
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ व्रत किया जाता है। इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसा करने से पर मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है। इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस बार ये व्रत 21 नवंबर को किया गया। आँवला नवमी पर आंवले के पेड़ का पूजन कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख -समृद्धि की कामना की जाती है।
आंवला वृक्ष पूजन का महत्व
धार्मिक मान्यता है कि आंवला नवमी स्वयं सिद्ध मुहूर्त भी है। इस दिन दान, जप व तप सभी अक्षय होकर मिलते हैं अर्थात इनका कभी क्षय नहीं होता हैं। भविष्य, स्कंद, पद्म और विष्णु पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। पूजा के बाद इस पेड़ की छाया में बैठकर खाना खाया जाता है। ऐसा करने से हर तरह के पाप और बीमारियां दूर होती हैं। इस दिन किया गया तप, जप , दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है।
कैसे शुरू हुआ यह पर्व
आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। प्रचलित कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की उनकी इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं ने भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थी तभी से यह परम्परा चली आ रही है।
आंवला नवमी पूजाविधि
सूर्योदय से पूर्व स्नान करके आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवले की जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर रोली ,अक्षत, पुष्प, गंध आदि से पवित्र वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने के बाद आंवला के पेड़ पर मौली बांधकर भगवान विष्णु के मंत्र का जप करना चाहिए फिर इसके आंवले के वृक्ष की सात परिक्रमा करने के बाद दीप प्रज्वलित करें एवं अपने परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना करें।